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________________ ७६ लब्धिविजयकृत नेमिनाथ फाग स्तवन [गुजराती साहित्यकोश खंड १, पृ. ३७९ पर आ कृतिनी संभवत: 'जैनयुग' ने आधारे ज नोंध लेवाई छे, परंतु कविपरिचय प्राप्त नथी. वस्तुतः आ तपगच्छना गुणहर्षशि. लब्धिविजय (जैन गूर्जर कविओ, भा. ३, पृ. २८१ - ८७ तथा गुजराती साहित्य कोश, खंड १, पृ. ३७९) होवानी संभावना छे. 'जैन गूर्जर कविओ' मां एमनी त्रण कृतिओनी एक हस्तप्रत एमना शिष्य आनंदविजये लखेली नोंधायेली छे ने आ नेमिनाथ फागनी हस्तप्रत पण ए आनंदविजये लखेली छे. गुणहर्षशि. लब्धिविजयनी 'दान शील तप भावना रास' वगेरे ॠण रासकृतिओ सं. १६९१थी १७०१नां रचनावर्षो बतावे छे. संपा. ] ९०. पंडित प्रवर पंडित श्री श्री श्री श्री श्री लब्धिविजयगणिगुरूभ्यो नमः . राग त्रिभंगी माननि महिअलि, समरी मंगलकारणे सारदमाय, नेमि निरंजन छयलछबीलो, गावत सब सुख थाय. 9 रामति खेलनां हो, अहो मेरे ललनां, रंगिली जोवनवय जदुराय, मिलिए मनमोहन मेलनां [मेरे ललनां] हो. आंचली. चूआ चंदन चंग चमेली, तेल फुलेल जबादि, Jain Education International लाल गुलाब अबीर उडावत, गोविंदगोरि रमें उनमाद. रंगी. २ नारायण ओर नैमि निरंजन, सोल सहस व्रजनारि, खेलत हिं खंडोखलि - नीरें, झीलत युं गज रेवावारि रंगी० गोरि सि भोरि सि थोरि सि काम सि, अंखु मेंदान चलावें, मानुं दो रूखमनि वेणि बनाय सिर सिंथो, समारी आप, नयनबान भमुह चढाइ चाप. रंगी० आगिं ठाढी आय ६ मानु मही मिलनें अब आयो, मंगुल हिंगुल आरूण काय रंगी० नेहगली सबें सहेली, हरि सनकारी नार, लाज कहा, इनसुं तुम्ह खेलो, नयननी करि मनुहारि. रंगी० चंग मृदंग वेणु श्रीमंडल, कंसालि, तवल ताल ढोल दडदडी भेरि नफेरी, बाजत गावत गीत कस्तूरी कपूर कुमकुमा, केसरको बहु भरि भरि सोविन सुंदर सिंगी छांटत आप रही एक तीर. रंगी० रसाल. रंगी० नीर, For Private & Personal Use Only ३ ४ 20 ५ ७ て www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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