________________
६६८
अज्ञातकृत महावीर स्तोत्र
(अपभ्रंशमां एक अतिप्राचीन काव्य.)
धरि सिद्धह जाउ जिणु, चउवीस वंउजु [वंदउ] वीरु, सो पणमतहं भवियजण (भवियाण), सीयलि होइ सरीरु. १ जसु कारणि संगम सुरउ, पडियउ भवसंसारि, पणमउ वीरु मरइ करहु, मूढा घरवावारि. २ अवइन्नउ पुप्फुत्तरह, सामिउ चरिम जिणिंदु, माहणकुलि कम्मह वसिण, चिंतइ एव सुरिंदु. ३ आणसिं सेणाहिवई, कुंडग्गामि जाएवि, तह गब्भह अवहरिउ जिणु, तिसलह उरि भिल्लेवि. ४ सामिय तुह अच्छेराई, महियलि हुवां वियारि, पुव्व क्किय कम्मह वसिण, णवि छुट्टइ संसारि. ५ सहि पहिलं गब्भहरणु, -पुण उवसग्ग सयाई, वीरह पढम समोसरणि, न पडिबुद्धउ कोइ. ६ चंद-सूरस्स विमाण तहिं, सहुं सपरियणि अवइण, अइसइवंतह जिणवरह, पणमेइ पाय सुरिंदु. ७ णव मासिहि अठ्ठह दिणिहिं, जायउ तिहुयणिणाह, पसविय सिद्धथ्यह घरणि, भवणि महुच्छउ जाउ. ८ हरिणगवेसि लइउ जिणु, तिसलइ सोयणि देवि, सकि उच्छंगि णिवेसियउ, मेरुसिहरि जाएवि. ९ पिखिवि बालउ लहुयतणु, चिंतइ एव सुरिंदु, केंव सहिसइ जल-णिवहु, एक्ककाउ णिवडंतु. १० चलणांगुलई मेरु पुणुि?]णु, जाणिउ सक्कह भाउ, बालत्तणि संचालियऊ, चिंतइ णिय मणि राऊ. ११ पेखिवि बालु अणंतबलु, आसंकिउ सुरिंद, दुटु दुठु मइ चिंतियउ, पुणु पुणु णमइ सुरिंदु. १२ जिणह करावितो मज्जणउं, पुणु जणणिहिं परिणेवि, सुरसाईं परितुठिण, वीर णउं तसु देवी. १३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org