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विनय(?)कृत नेमिनाथ द्वात्रिंशिका
६६५ एहु रेवंतगिरि सुकय जण सल्लहो, तित्थ तियलोयगुरू नेमि जगिवल्लहो, नमिय मणरंगि गुणरंगि तसु थुणियउ, वरस ए मास दिण धन्न करि मुणीयउ. २९ नाह लद्धउ नाह लद्धउ मणुअ-भव एह, कुल निम्मल सुगुरू गुरू वीतराग जिणधम्म संजम, तुह दंसण पूयण न्हवण गुणह गान गिरनार उत्तम, इत्तिय चडिउ ईक्क हिव हत्थालंबण देहि, जिम हेलाई हउं चडउं, अइ गुरूअइ सिवगेहि. ३० पुहवि पूरिय पुहवि पूरिय सयल वरिसाउ, सिरि रेवयगिरि चडिय नाण ठाण मासोपवासिहि,
आसाढ अठमि रयणि धवल पखि मुणिगण विभासिय, पंच सया छत्तीस सउं उम्मूलिय भवकंद, सोहगसुंदर सिद्धिपुरि, पत्तउ नेमि जिणंद. ३१ इय नेमिजिणवर भवणदिणयर वासुदेव नमंसिउ, गोमेध अंबिक जक्ख जक्खिणि विहिय सासणि संसिउ, इगवीस ठाणि सुद्ध झाणिहिं विनय भत्तिहिं संथुउ,
जगि जणीय रीजं बोधिबीजं देहि वंछिय पूरउ. ३२ - इति श्री नेमिनाथ द्वात्रिंशंका स्तवन.
[जैनयुग, वैशाख १९८५, पृ.३७५-७६]
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