________________
प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
रासउ
इणि वचनि हरी आणंदीअला, ऋतु वसंत अवसर आइयला, वाइला दक्षिण वायु तु, जिन जिन, कुसुमि कुसुमि भमरा रणझणीआ, मयणराय हयवर हणहणीआ, भूयणि भयु भडवाय तु, जिन जिन. द्रूपद. रेवयगिरि मिली रमल करंतो, मुगतिरमणी हीइ धरतो, खेलें मास वसंत तु, जिन जिन,६ रमे रंगे जादव भूपाला, शशिवयणी साथें वरवाला, माला कुसुमची हाथि तु, जिन जिन. पाधि पाइल कवडाए ए, कणयर करणी कवडीए ए, कदली करे आणंद तु, जिन जिन. फोफली फणस फली बीजउरी, वनस्पति दीसे मोरी, मोरीयडा मुचकंद तु, जिन जिन.
३२
३१
फागु
कुंद-कली महिमहीआ, गहगहीआ सहकार; करई वृक्ष नारंगना, अंगना रंग अपार. ३३ जाइ जुइ वर किंशुक, किं शुकवदन सुदृक्ष; त्रिभुवन-जन-आनंदन, चंदन चंपक वृक्ष. ३४
___ काव्यं (शार्दूल०) वृक्षाः पल्लविता लता: कुसुमिता शृंगा: सुरंगा वने, सारं गायति कोकिला कलरवैर्वापीजलं मंजुलं, एवं मित्रवसन्तदत्तसकलप्राणोऽपि सैन्यैः स्वकैमेने दुर्जयमेव मन्मथभटो योगीश्वरं नेमिनं. ३५
रासु नेमि अनइ नारायण पुहुता, पुहुता वर गिरिनारि रे; रमई भमई बेउ रमलिं तरंगिहिं, रंगिहिं वनह मझारि रे. ३६ बेइ नवयौवन बेउ यादवकुल, बकुल-विकाशन वीर रे;
बेइ निजरूपिइं जन-मन मोहि, अंजनवान शरीर रे. ३७ ६. पाटणनी प्रतमां आ पहेलांनी अने आ पंक्ति नथी, ७. सबक्ष.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org