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________________ ६५० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह पण विद्या साधवा माटे एमणे ब्रह्मचर्य पाळवार्नु होय छे. एक ए करी शके छे ने विद्या साधी पाछो जाय छे. बीजो (विद्युन्माली) पोतानो संसार ऊभो करी त्यां ज रहे छे, विद्या साधी शकतो नथी. कडी ९ : एक कणबीए खेतरमां पंखीओने उडाडवा शंख वगाडतां, चोरो भयथी पोते चोरी लावेलां पशुओ छोडीने चाल्या गया ने ए पशुधन पेला कणबीने मळ्यु. एनाथी ललचाईने ए वारेवारे शंख वगाडवा लाग्यो, एटले चोरो समजी गया के आ तो पंखीने उडाडवा शंख फूंके छे. एमणे भय छोडी कणबीने ज लूट लीधो. कडी १०: बे वांदरा लडी पड्या. एक घायल थईने भाग्यो. तरसनो मार्यो कादव चाटवा गयो पण एमां ज फसाई गयो. कडी ११: सिद्धि अने बुद्धि नामनी बे स्त्रीओ लाभ मेळववा यक्षने पूजे छे. सिद्धिने जे आप्यु होय ते मने बमणं आपो एम बद्धि कहेती होय छे. एटले सिद्धि एक वखते पोताने एक आंखे काणी करी देवानुं मागे छे. बुद्धि बेय आंखे आंधळी थई जाय छे. कडी १२: पोते जीतेली एक सुंदर घोडी राजा मंत्रीने संभाळ राखवा सोंपे छे. मंत्री घोडीने रोज जिनमंदिर वगेरे नियत स्थाने ज जवाआववानी टेव पाडे छे. एटले एने त्यां घोडीने चोरी जवा एक माणस आवे छे तेनो प्रयत्न निष्फळ जाय छे, केमके घोडी आडमार्गे जती ज नथी. कडी १३ : नबापा छोकराने मा कंई काम करवा शिखामण आपे छे, त्यारे ए मूर्ख छोकरो रस्ते जता गधेडाने पूंछडे वळगे छ ने पोताना दांत पाडे छे. कडी १४: कोटवाळे पोतानी प्रिय घोडीनी संभाळ राखवा सोलो नामना माणसने राख्यो. घोडीने जे सारूंसारुं खावानु मळतुं तेमांथी घणुं ए खाई जतो. घोडी मरीने वेश्या तरीके जन्मी. सोलो ए गाममां ब्राह्मण तरीके जन्म्यो. कामासक्त थई ए वेश्याने द्वारे पड्यो रहेवा लाग्यो, एना नोकर तरीके बधां काम करवा लाग्यो अने एनां अपमान पण सहन कर्ये गयो. कडी १५: पंखी ‘साहस न करवू' एम बोलतुं जाय कामांना वाघना दांते चोंटेला मांसना कणो लेतुं जाय अने लईने झाड पर पार्छ जतुं रहे. एम वारेवारे कर्या करे, लोभ न छोडे. अंते वाघ एनो कोळियो करी गयो. कडी १६: प्रधानने त्रण मित्रो - एक नित्यमित्र, एक पर्वमित्र, एक जुहारमित्र. राजा तरफथी संकट आव्युं त्यारे नित्यमित्र ने पर्वमित्र काम न आव्या, जुहारमित्रे ज मदद करी. (देह ते नित्यमित्र, सगांसंबंधी ते पर्वमित्र अने धर्म ते जुहारमित्र एम तात्पर्य छे.) कडी १७: रोज नवीनवी कथा सांभळवाना रसिया राजा पासे जवानो वारो एक ब्राह्मणनो आवे छे. एनी जीभ तोतडाती हती तेथी एने बदले एनी पुत्री जाय छे. ए पोताना जीवननी एक बनावी काढेली वार्ता कहे छे. राजा पूछे छे के तें आ कथा कही ते साची के जूठी ? त्यारे ते ब्राह्मण-कन्या कहे छे के जेवी तमे रोज कथा सांभळो छो तेवी आ. एटलेके जूठी. बधी कथाओ आवी ज होय. कडी १८: ललितांगकुमारने राणीए भोग भोगववा बोलाव्यो पण राजा आवी चडतां ऊंचकीने फेंकी दीधो ने ते कचराना कूवामां पड्यो. एने एटुंजूटुं खावानुं नाखवामां आवतुं. वर्षाऋतुमां खाडामां पाणी भरातां तणातां ते किल्ला बहारनी खाईमां आव्यो. ऊगरीने ए पाछो पोताना पूर्व रूपमां आव्यो, पण हवे भोगविलास माटेर्नु राणीनुं आमंत्रण एणे न स्वीकार्य. - संपा.] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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