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________________ ६४९ सं.१५३५मां लखायेलां प्राचीन काव्यो [आ काव्योनी हेमचंद्राचार्य ज्ञान मंदिर, पाटणनी हस्तप्रत क्रमांक १६१०८ प्राप्त थई छे, जे देशाईए उपयोगमा लीधेली ज प्रत छे. एने आधारे अहीं क्वचित् पाठशुद्धि करवानी थई छे. ते उपरांत, कोईकोई काव्यनी अन्य हस्तप्रत पण प्राप्त थई छे, जेनो यथोचित लाभ लेवामां आव्यो छे. एनी माहिती जे-ते काव्यना आरंभे मूकवामां आवी छे. – संपा.] १. सीहाकृत जंबूस्वामी वेल [आ कवि अने तेनी बे कृतिओ जैन गुर्जर कविओ भा.१ पृ.१५४ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.१५४ पर आ संदर्भने आधारे ज नोंधायेल छे. नीचेनी कृति 'अप्रगट गुजराती कृतिओ' (संपा. कुमारपाळ देसाई)मां पण मुद्रित मळे छे('ख' संज्ञा). एने आधारे तेमज स्वतंत्र रीते पण केटलाक पाठ अहीं सुधारवाना थया छे, केटलांक पाठांतरो पण नोंधवानां थयां छे. दीक्षा लेवा तैयार थयेला जंबूस्वामीने वारवा माटे एमनी राणीओ कथाओ कहे छे अने जंबूस्वामी पोताना वैराग्यभावना समर्थनमां कथाओ कहे छे ते आ कृतिमा अत्यंत लाघवथी निर्देशाई छे. कडी १: कोईने घरे गोळ मांडा (गळ्या खाजां) खाईने आवेला बग नामना खेडूते घउं अने शेरडी वाववा माटे पूरा नहीं पाकेला कोदरा ने कांगवा उखेडी नाख्यां पण घउं अने शेरडी तो वावी शकायां नहीं ने एम बन्ने गुमाव्यां. कडी ३: मरेला हाथीना शरीरमा पशुओए फोली खाधेल गुदाद्वारथी प्रवेशेलो कागडो लोभमां ने लोभमां शरीर मध्ये पहोंची गयो ने उनाळामां शरीर संकोचातां गुदाद्वार बंध थई जतां अंदर पुराई गयो. वर्षाऋतुमा शरीर पार्छ फूल्युं, पण तणाईने समुद्रमा पहोंची गयुं एटले बहार नीकळेला कागडाने माटे किनारो आघो थई गयो. अंते ए हाथीना शरीर साथे डूबी गयो. कडी ५: झाड पर रहेतां वांदरोवांदरी कोई तरुविशेष पर जतां नरनारी बनी गयां. वांदराने लोभ लाग्यो ने देव-अवतार मेळववा माटे फरी ए तरुविशेष पर गयो पण ते देव बनवाने बदले पाछो वांदरो बनी गयो. कडी ६: जंगलमा लाकडां बाळी कोलसा बनावनार पोतानुं बधुं पाणी पी गयो तोपण तरस छीपी नहीं. झाड नीचे सूतां स्वप्नमां पण नदी, सरोवर, सागरनुं पाणी खाली करवा लाग्यो, पण खारा पाणीथी एनी तरस छीपी नहीं. कडी ७ : राजानी राणी विलासी पुरुष (महावत)मां लुब्ध थई. एने छोडीने एक चोरने गई. पहेलां भारे कपडांघरेणां सामे कांठे मूकी आQ एम कही राणीने निर्वस्त्र करी चोर नासी गयो. ए वखते आ स्त्रीने पाठ भणाववा माटे, चोरने बदले हत्या पामेलो ने देवयोनिमां गयेलो महावत शियाळy रूप लई पोताना मोंनो मांसनो टुकडो छोडी नदीमांनी माछलीने पकडवा गयो, जे दरमियान समडी मांसनो टुकडो उपाडी गई. माछली तो एने मळी नहीं. आम वधु लेवा जतां हाथमां होय ते पण गुमाववानुं थाय एम ए बतावे छे. कडी ८: बे विद्याधरो विद्या साधवा माटे चांडालकन्याने परणीने रहे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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