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विविधविषय सुभाषितो
(तृष्णा)
लाभे लोभ वधे घणो, इंधणथी जेम आग्य; तृष्णादाह समाववा, जल सम ज्ञान वैराग्य. (दुःख देनारा पांच वव्वा)
व्याधि व्यसन विवाद ने रे, वैश्वानर ने वैर रे, चतुर नर, पांच वव्वा वध्या दुःख दीए, दालिद्र नाम मनुष्यने रे, आयु विना मृती झेर रे, चतुर नर, रोग विना रोगीपणुं.
(रात ने वहाली ?)
कौशिक चोर ने भूतडां रे, नर परदाराध्यान रे, चतुर नर, रात्रि वल्लभ चारने हो. (विश्वास न करवा लायक कोण ?)
चिंते कुंवर नवि विससो रे, ठग ठक्कर सोनार रे, चतुर नर, सर्प रिपु ने वाणिया. हथियारबंध ने वांदरां रे, परदारा मंजार रे, चतुर नर.
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[ जैन श्वेताम्बर कोन्फरन्स हेरल्ड, नवेम्बर १९१३, पृ.५४४-४६ तथा डिसेम्बर १९१३, पृ. ५६५ - ६७]
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