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________________ ६१९ प्राचीन गुजराती सुभाषितो (संस्कृत ग्रंथोमांथी) (विशालराजसूरिशि. सुधाभूषणना शिष्य जिनसूरे करेली 'प्रिमंकरनृपकथा' मां देशी दुहा वगेरे उल्लेख करी सूक्तो आपवामां आव्या छे. 'रूपचंद कथा' विशालराजसूरिशि. जिन(राज)सूरिए संस्कृतमां रचेल छे.) [जिनसूर तपगच्छना छे ने 'प्रियंकरनृपकथा' मुख्यत्वे संस्कृत गद्यमां रचायेल छे. 'रूपचंदकथा' ते वस्तुत: ‘रूपसेनकथा' छे ने आ जिनसूरनी ज संस्कृत कृति छे. जिनसूरनो समय सं.१६मी सदी आरंभनो छे. जुओ जैन गुर्जर कविओ भा.१ पृ.९३ अने भा.६ पृ.४२९ तथा जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, पृ.२३४. ___'प्रियंकरनृपकथा' तथा 'रूपसेनचरित्र' प्रकाशित थयेल छे. आ सुभाषितोनी मेळवणी 'प्रियंकरनृपकथा'ना प्रकाशित पुस्तक तथा 'रूपसेनचरित्र'नी ला.द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनी हस्तप्रत साथे करी केटलीक शुद्धि करवामां आवी छे. ___ तपगच्छना रामविजयशि. देवविजयकृत ‘पांडवचरित्र' सं.१६६०मां रचायेल संस्कृत गद्यकृति छे. एमनी बीजी संस्कृत गद्यकृति 'रामचरित्र' सं.१६५२मां रचायेल छे. जुओ जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ.५९१, फकरो ८६९. ऋद्धिचंद्रकृत संस्कृत 'मृगांकचरित' 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास'मां नोंधायेल नथी. आ बन्ने कृतिओ छपायेल छे. - संपा.] १. जिनसूरकृत 'प्रियंकरनृपकथा' माथी ताई तेली तेरमो, तंबोली तलार, पंच तकारा परिहरो, पछे करो विवहार. (बीजी रीते) ताई तेली तेरमो, तरक तीड सोनार, ठग ठकुर अहि दुज्जणह, जे विससि ते गमार. पडिवन्नुं गिरुआ तणुं, निरलेहबुं [निरवहवं?] निरवाण, तुमे देशान्तर चल्लिया, अम्हें पणि आगेवान. ४० जिणि दिणें वित्त न अप्पणे, तिणि दिन मित्त न कोइ, कमलह सूरिज मित्त पुण, जल विण वयरी सोइ. ४१ नखइं नारि तुरंगमह, मुत्ताहल खग्गह, पाणी जाह न अग्गलो, गयुं गिरुअत्तण तांह. ४५ (कर्ता पोते 'आकाशवाणी आम थई' एम करी कहे छे :) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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