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________________ माणिक्यसुंदरसूरिकृत नेमीश्वरचरित फागबंध (विक्रमनी पंदरमी सदीना उत्तरार्धमा विधिपक्ष - अंचलगगच्छनी ५७मी पाटे थयेला मेरुतुंगसूरिना बे शाखाचार्य नामे जयशेखरसूरि अने माणिक्यसुंदरसूरि पैकी बीजाए आ काव्य रच्यं छे. जयशेखरसूरिए प्रबोधचिंतामणि, उपदेशचिंतामणि आदि ग्रंथो रच्या छे (जुओ मारो जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, फकरो ६५०), ज्यारे प्रस्तुत माणिक्यसुंदरसूरिए चतुःपर्वीचम्पू, श्रीधरचरित्र (सं.१४६३), धर्मदत्तकथानक, शुकराजकथा, मलयसुन्दरीकथा (गुजरातना शंखराजानी सभामां), संविभागवतकथा, सत्तरभेदीपूजा, गुणवर्माचरित्र (सं.१४८३) वगेरे संस्कृतमां कथा-ग्रंथो रच्या छे. तदुपरांत कल्पनियुक्ति पर अवचूरि, आवश्यकनियुक्तिदीपिका, पिंडनियुक्तिदीपिका, ओघनियुक्तिदीपिका, दशवैकालिकदीपिका, उत्तराध्ययनदीपिका, आचारांगदीपिका अने नवतत्त्वविरण ए प्रमाणे संस्कृतमा टीकाओ रची छे. गुजराती भाषामां गद्यमां ‘पृथ्वीचंद्रचरित्र' अने पद्यमां आ काव्य रचेल छे. (जुओ मारो उक्त ग्रंथ, फकरा ६८१-(८२) उपर्युक्त गुजराती गद्यमां 'पृथ्वीचंद्रचरित्र'ना संबंधे प्रसिद्ध साक्षरवर्य केशवलाल हर्षदराय ध्रुव पोताना 'प्राचीन गुर्जर काव्य'नी प्रस्तावनामां पृ.३८-३९मां जणावे छे के "माणिक्यसुंदरसूरिए जूनी गूजरातीमां गद्यात्मक पृथ्वीचंद्रचरित्र संवत १५७८मां रच्यं छे." आ संवत प्राय: मुद्रणदोषने लईने खोटो छे. खरी रीते १४७८मां' जोईए, कारणके ते गायकवाड ओरियेन्टल सीरीझ नं.१३ना 'प्राचीन गूर्जर काव्य संग्रह'ना पृ.९३थी १३०मां छपायु छे त्यां अंते 'संवत १४७८ वर्षे श्रावण सुदि ५ रवौ पृथ्वीचंद्रचरित्रं पवित्रं पुरुषपत्तने निर्मितं समर्थितम्' एम स्पष्ट छपायुं छे अने तेमनो जीवनकाल पण ते ज समयमां छे. (जुओ मारो ग्रंथ जैन गुर्जर कविओ, भाग बीजो, पृ.७७२) [बीजी आवृत्ति भा.१, पृ.४५-४६] ते बोलीमां छे. अक्षरना, रूपना, मात्राना, लयना बंधनथी मुक्त छतां तेमां लेवाती छूट भोगवतुं प्रासयुक्त गद्य ते बोली. माणिक्यसुंदर बोलीवाळा प्रबंधने वाग्विलास एटले बोलीनो विलास एवं नाम आपे छे. आ गद्यचरित संबंधी नडियादनी प्रथमनी परिषद् माटे श्रीयुत प्रह्लादजीए एक निबंध लख्यो हतो ते 'जैनयुग' मासिकमां प्रकट थई गयो छे... विक्रमनी पंदरमी सदीना उत्तरार्धना गुजराती गद्यनो नमूनो पूरो पाडनार माणिक्यसुंदरसूरिनु गुजराती काव्य सद्भाग्ये मळी आव्यु छे, जे ते ज सदीना गुजराती पद्यनो अविकल सुंदर नमूनो पूरो पाडे छे. माणिक्यसुंदरसूरिनुं आ काव्य मनोरंजक, हृदयस्पर्शी अने मंजुल पदावलियुक्त छ; अने तेमां जुदाजुदा छंदो छे.. आ काव्य, संशोधन करवामां, मळेली त्रण प्रतोनो उपयोग करवामां आव्यो छे. पहेली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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