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________________ ४७ Jain Education International अज्ञातकृत ऋद्धिगारव उपर कथा ( विक्रम १५मा सैकानुं गद्य.) [ 'जैन गूर्जर कविओ' मां आ नोंधायेल नथी. - संपा. ] अत्र कथा - दशार्णपुर नगर दशार्णभद्र राजा महार्द्धिमदनउ धणी. एक वार श्री महावीर पाउधार्या सांभली चीतवई, स्वामी तिसिहं आडंबर जई वांदउं, जिसि बीजउ को वांदी न सकइ. गजेंद्र गुडी तुरंगम पाखरी सातसइ राणी सुखासनि बइसारी माहा मंडाण आवि. तिसिद्धं सौधर्मेंद्र तेहतउ मद उतारिवा भणी चउसठि सहस्र श्वेत हस्ती विकुर्वीआ, एकेकानई पांचसई चारोत्तर मुख, मुखि मुखि आठ आठ [ दंतूसल ], दंतूसलि आठ आठ वावि, वाविइं आठ आठ कमल, कमलि कमलि लाख लाख पांखडी, पांखुडीई पांखुडीइं बीस बद्ध नाटक देवता कर, कर्णिकाई कर्णिकाई तिहां सिंहासन आठ अग्र महिषी सहित इंद्र बइठउं ते नाटक जोअइ छई. इसिइ मंडाणि इंद्र आविउं देखी, दशार्णभद्र राजा हुई आपणी ऋद्धि उच्छी भणी वैराग्य ऊपनऊ. तत्काल दीक्षा ली . इंद्र आवी पगि लागउ. कहइ, स्वामी, हवई तिइं जीतउं, जउ चारित्र लीधउं प्रशंसा करी वांदी पाछउ गिउ. हवइ तीणई भाग्यवंतई ऋद्धिगारव करीनइ पछइ समारिउं, अनेर ते वस्तु न हुई ते भणी ऋद्धिगारव न करवउ. छ. श्री. आवश्यक बालावबोध पत्र संख्या १५० लख्या संवत १४५५ वर्षे भाद्रव मासे शुक्लपक्षे १२ गुरुवासरे लिखितं ठा. कायस्थ (डॉ. भाऊ दाजी कलेक्शन, रोयल ए. सो. मुंबई, नं. २०२ ) [जैनयुग, चैत्र १९८४, पृ.२९९ ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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