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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह तुं एक भखनकौ संग करै, सो तो पनको भख्य; पत न रहै वा पुरसकी, जतन करो कोइ लख्य. ५५ भरीया ते छलकै नही, छलकै ते आधा; माणस एही पारख्या, बोल्यां ने लाधा. ५६ पणघट जातां पण घटै, पणघट वाको नाम; जो कोइ पणघट जात है, रहै न ताकी मांम. ५७ पाघ भाग सूरति प्रकृति, वाणी चाल विवेक; अक्षर लिखै न एकसा, देखो देस अनेक. ५८ छल बल कल विद्या सुगुण, उधम साहस धीर; जामें यह है आठ गुण, ताको घटत न नीर. ५९
ओट गहीजै इसकी, ओलंकी कया ओट; जिण ओटें नर उच्चर, लगै न जमकी चोट. ६० कहै किसीकै कछु नहीं, जो अपनी मन सुद्ध; प्रगट होइगौ आपही, इह पांणी इह दूध. ६१ निवहै नांही नीचकौ, बहुत काल लगि नेह: थिर हुइकै ठहिरै नही, राज उसको तेह. ६२ ए कठिन गति कर्मकी, किनही लखी न जाय; राय होत है रंक, रंक होय फिर राय. ६३ इक कंचन इक कामिनी, दो जगमें फंदा; इनसें जो न्यारा रहै, तिणका मैं बंदा. ६४ इक कंचन ईक कामिनी, दो लंबी तरवार; जातें थे प्रभु मिलनकी, बिच ही रख्ये मार. ६५ पंडितसें झगडा भला, भला न मूरख मेल; निजर देख्या घी भला, खाधा भला न तेल. ६६ पंडितकी लातां भली, भली न मूरख बात; . ऊण लाते सुख उपजै, ऊण बाते घर जात. ६७ वाते हाथी पाईयै, वातें हाथि-पाई; वाते लागां लाईयै, वातै लागै लाय. ६८ जो अप्पणा सु अप्पणा, पर अप्पणा न जांण; तुस हुंता सो उड गया, कण रहिया निरवांण. ६९
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