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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह आंबो अमृत सार, दूहवीयो दोषै नही; मोटा न गिणे मार, कैरी आपै, किसनीया ! २५ मीठै की हद जीभ है, खैवैकी हद गर्म; सुंधै की जस वासना, भूखनकी हद सर्म. २६ एक घरी आधी घरी, ताही कौ फुन आध; साधां सेती गोठडी, जीव्यांको फल लाध. २७ काल्ह करतौ आज कर, आज करतौ अब्ब; एक दिन आवैगी नींदडी, पड्या रहैगा सब्ब. २८ विद्या वनिता वेल नृप, नहि जांने कुल जाति; जाहीकै संगै रहै, ताहीसै लपटाति. २९ जलमें वसै कमोदिनी, चंदो वसै आकास; जो जाहूके मन वसै, सो ताहूके पास. ३० मीठै बोल्यै बहुत गुण, जो कोई जांणै बोल; विण दामांही बाहिरो, माणस लीजे मोलि. ३१ अहिमुख पौँ सु विष भयौ, कदली कंद कपूर; सीप पर्यो मोती भयौ, संगतिके फल सूर. ३२ ओछी संगति श्वानकी, दो, वाते दु:ख; रूठो काटै पावकुं, तूठौ चाटै मुख. ३३ संगति कीजै साधुकी, हरै ओरकी व्याधि;
ओछी संगति नीचकी, आलु पहर उपाधि. ३४ संगति भई तो कया भया, हिरदा भया कठोर; नव नेजां पांणी चहै, तोउ न भीजै कोर. ३५ पात पडतौ देखक, विकसी कुंपलियांह; हम वीते तुम्ह वीतस्यै, धीरी बप्पडियांह. ३६ पात पंडतो युं कहै, 'सुण तरुवर वनराय; अबके विछुरे कब मिलें, दूर पडेंगे जाय.' ३७ तबही तरुवर यु कहै, 'सुनहु पात ! मुझ बात; ईन घर आही रीत है, इक आवत इक जात.' ३८ भजन कह्यौ तारौं भज्यौ, भज्यो न एको वार; दूर भजन जातें कह्यो, सो तें भज्यौ गमार. ३९
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