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________________ ५७८ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह २. ऋषभदेव गीत राग मारूणी रीषभदेव मेरा हो, पुन्यसंयोगें पांमीया, में दरसण तेरा हो. रीषभदेव मेरा हो. १ लख चोरासि हुं भन्यो, स्वामी, भवका फेरा हो, दुख अनंता में सह्यां, सामी, तीहां बहोतेरा हो. २ चरण तुमारां में ग्रह्यां, सामी अबकी वेलां हो, समयसुंदर कहे तुम्हथी, सांमी कोण भलेरा हो. ३ ३. आरतिनिवारण गीत राग गुजरी मेरा जीव आरति काहा धरे, जेसा वखतमें लखित विधाता, तिनमें घटे न बढे[कछु न टरे]. मेरा. १ चक्रवर्ति शिर छत्र धरावत, के कण मंगत फरे, एक सुखीया अक दुखीया दीसे, ए सब करम करे. मेरा० २ आरति अब छोर दे जीउडा, रोते न राज चडे[चरे], समयसुंदर कहे जो सुख वांछे, कर धरम चित खरे. मेरा० ३ [क्र.१,२,३: जैनयुग, वैशाख १९८५, पृ.३५३] ४. सुविधिनाथ गीत राग केदारो गुण अनंत अपार प्रभु, तोरा गुण अनंत अपार. सहस रसनां करत सुरगुरू, तौही न पावै पार. १ प्रभु० कौंन अंबर गिणे तारा, मेरू गिरको भार, चरमसागर लहिरमाला, करत कौंन विचार. २ प्रभु० भक्ति गुण लवलेस भाखै, सुविध जनसुखकार, समयसुंदर कहत हमकुं, स्वास तुम्ह आधार. ३ प्रभु. (मुनि जशविजय संग्रह) [जैनयुग, महा-चैत्र १९८६, पृ.२२४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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