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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
भास
सयरह ए सोच करेवि. धोअति पहरवि निरमलीय; पूजइ ए भाव धरेवि, घरि देवालइ देव जिण. गंधिहि ए धूविहि, सार अरकहिं फुल्लिहिं दीव इम; नेवज ए फल जल सार, अट्टपयारी पूज इम. १० देवह ए तणउ जे देव, पूजउ जाइवि जिणभवणि; निम्मल ए अकल अमेय, अजर अमर अरिहंत पहो. ११ एकहि ए मोख तुरंत, राग दोस बे जो जिणई ए, यहि ए तिहि सोहंत, नाणिहिं दंसणिहिं चारितिहिं. १२ मेलवि ए च्यारि कसाय, पंच- महव्वय-भार-धरो; छव्विह ए जीव-निकाय. सदय अभय जो नितु चवई ए. १३ अठहिं ए मदिहिं विमुक्त, बंभगुत्ति नव साचवई ए; आल िए खणविन ढुक्क, दसविह धम्मसमुद्धरण. १४ जाईवि ए पोसह - साल, एरिस सुहगुरु वंदियां ए; माणस ए निकर सियाल, जाह न धम्म न देव गुरु. १५ अरकई ए सुहगुरु धम्म, सावधान धांमी सुणउ ए; धम्मह ए मूल मरम्म, जीवदया जं पालीयई ए. १६ झूठह ए नवि बोलेहु, आल दीयंतउ अलसू ए; देख िए मानु लेहु, परधन तृण जिम मन्नियई ए. १७ निय तीय करि संतोस, परती मन्नह मा बहनि; परिहरउ ए कूडउ सोस, करि परिमाण परिग्गह ए. १८ जाणवी ए धम्मह भेद, दान- सीयल-तप-भावनाहिं; देणा ए एम सुवि, वंदवि गुरु जो घरि गयउ ए. १९ धोवती ए मिलवि ठाइ, तउ ववसाय समाचरई ए; परिहरउ ए पाप-व्यापार, न्यायहि धण कण मेलवई ए. २०
वस्तु
कहउं पनरस कहउं पनरस कम्म-आदाण; इंगाली वण सगड भाड फोड जीवय विवज्जहु, दंत लक्ख रस केस विस वणिज कज्जि न कयावि संचहु;
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