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जमलकृत स्त्रीगुण सवैया
[जटमल धर्मसी नाहर ए हिंदी कविनी रास, गझल वगेरे प्रकारनी कृतिओ सं. १६८३थी १६९३नां रचना वर्षो बतावती कृतिओ मळे छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा. ३, पृ. २७१-७४. - संपा. ]
छूट छूट कंठने पर्यो हे हार टूट टूट, फूट फूट भुवन भए है धूर छारसी, फूलन सी से छारि चरनि पसार डार, परी हे बेहाल बल काट भ्रम डारसी, कैले हे न चालै है न खेले है न खासै है, न बै गयो चिठो ग सरी चक धारसी, मेरठ कह्यौ जउ मानों तों तुम्ह जाइ देखों, कहा कउ गहि केरै कंकनकु आरसी. १ कुरंग से नयन कटि के हरतंइ अति कृश कुंबल ससा सी गति गजकी विशेषि है, कोकिल से कंठ कीर नाक सो कपोत ग्रीव, चलत मराल चाल सुंदर सु देखि है, कुसुम अनार से कपोल देह केतकी सी, कवल से कर नाभ केसूफल रेखि है, अधर अरण बिंब दाढौं दन्ति ढौंडी अम्बि, जटमल कुच श्रीफल स्त्रीय हसि देखि है. २ [जैन गुर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति भा. ३, पृ. २७४]
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