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लोकाशाह अने लोंकामतविषयक काव्यो
दानिईं जु घट पापि भराइ, तु तुम्हे भिक्षा मागु कांइ, वचन तणो हठ छे अति घणो, परमारथ प्रीछिउ तुम्ह तणो. २९ छेदग्रंथमाहि संग्रहिउ, कल्पसूत्र सविशेषह कहिउ, दीवाली दिनि उत्सव सार, लिइ पोसह तव राय अढार. ३० भगवइ अंगे अमावस तणा, आठमि चऊदिसि पूनिमि घणा, तुंगीया नयरी श्रावक तेउ, पोसह लेता भाव धरेइ. ३१ नंदि सूत्र जोयो उत्साहि, वली विशेषावश्यक माहिं, द्वार अछे अनुयोगह ठाम, चऊविह संघ तणां तिहां नाम. ३२ तिहां थापना ठणहारी भणी, छ आवश्यक करिवा भणी, उभय काल पडिकमणुं सही, बोलिउं छे शुभ ध्यानिइं रही. ३३ पांच समिति तव हिअडई धरे, त्रिणि गुपति सरिसी आदरे, इम छ आवश्यक उच्चार, करि भविअण, भूलि गमार. ३४ भगवइ अंग अने ठाणांग, तिहां में दीठा अक्षर चंग, आवश्यकि बोल्यां पचखाण, दसे प्रकारे जाणे जाण. ३५ कुमति बोले कुडो मर्म, जिनपूजा करतां नहीं धर्म, पूजा करतां हिंसा हवई, एहवी वात अनाहत लवइ. ३६ श्री आवश्यक अति अभिराम, जिहां चउविसत्थानूं ठाम, श्रावक पूजाने अधिकारि, ते गाथा तुं हीइ विचारि. ३७ पूजा करतां हुई व्यापार, टले पाप जिम कूप प्रकार, कूप खणंतां कादव थाई, कचरे (कज्जरइ) लागे शिर खरडाई. ३८ धन. निर्मल नीरि भरिउ ते जिसिइं, विमल देह त्रस भाजइ तिसिइं, घणा जीव पामे संतोष, त्रिषा-रूप नासे मनि रोष. ३९ कूप तणे दृष्टांते कही, द्रव्यपूजा श्रावकनें सही, यति श्रावक मारग नही एक, अंग उपासक मांहि विवेक. ४० बि मारग आवश्यक ठामि, धुरि सुश्रामण (सुविहित) सुश्रावक नामि, संविग्नपाक्षिक त्रीजा जोई, मुनिवर पूजा भाव जि होई. ४१ पंच महाव्रत आदिइं जाणि, दशविध यतिनु धर्म वखाणि, भाव द्रव्य पूजा व्रत बार, धुरि समकित श्रावयकुलि सार. ४२ राय प्रदेसी केसी पासि, जिनमत जाणिउं मनउल्लासि, पुहुतई आयु दिवंगत भयु, सूरिआभ नामिइं सुर थयु. ४३
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