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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह बुझंति जाव अंतं करंति' ए सामान्य सूत्रे सामान्यथी देवकिल्विषियाने ‘चत्तारि पंच' शब्दथी अथवा 'जाव' शब्दथी जेम अनंतो संसार लीजे तेम जमालिन सूत्रे पण 'जाव' शब्द 'ताव' शब्द बाहिरथी लेई अनंतो संसार कहेवो' एवं लख्युं छे ते ताण्यु प्रतिभासे छे तथा ए सामान्य सूत्र ज एवं पण संभवतुं नथी, जे माटे अत्थेगइआअणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरिअट्टति' ए सूत्र अनंत संसार आगळ कर्वा छे ते भणी पहेलुं सूत्र जमालि सरिखा देवकिल्बिषियानुं ज संभवे. ४५
'अत्थे गइआ' ए सूत्र अभव्य विशेषनी अपेक्षाए, जे माटे एमां छेडे निर्वाण नथी कां' एवं लख्यं छे ते पण न घटे, जे माटे 'असंवुडनई' सूत्रे पण छेडे निर्वाण कह्यो नथी; तथा भव्यविषय पण एवां सूत्र घणां छे. ४६
तिर्यग्-मनुष्यदेवेषु भ्रान्त्वा स कतिचिद्भवान्,
भूत्वा महाविदेहेषु दूरान्निर्वृतिमेष्यति. ए उपदेशमालानी कर्णिका श्लोकमां तिर्यंच-मनुष्य-देवतामा केटलाक भव करी जमाली मोक्ष जशे एवं कर्तुं छे तेणे करी अनंता भव न आवे. तिहां कोईक कहे छे जे ‘आ भव लोकनिंदित केटलाक लीधा, बीजा सूक्ष्म एकेन्द्रियादिकमां अनंता जाणवा' ए पण घणुं ज ताण्डे जणाय छे, जे माटे नाम लेई व्यक्तिं भव कह्या ते स्थूल केम कहीए ? अने थाकता अनंता भव पण शाथी जाण्या ? ४७
__ 'कर्णिकामां दूरे मोक्ष जशे एवं कर्तुं ते माटे केटलाक भव कह्या तो पण थाकता अनंता लेवा' एवं लख्युं छे ते पण पोतानी ज इच्छाए, जे माटे तिर्यक्षु कानपि भवानतिवाह्य कांश्चिद्देवेषु चोपचितसंचितकर्मवश्यः । लब्ध्वा तत: सुकृत जन्म गृहे विदेहे जन्मायमेष्यति सुखैकखनिर्विमुक्तिम् ।।
ए सर्वानंदसूरि विरचित उपदेशमालावृत्तिमा 'दूर' पद विना पण केटलाक भव कह्या छे. ४८
सिद्धर्षिनी हेयोपादेय उपदेशमालावृत्तिनी केटलीक प्रतोमां अनंता भव दीसे छे माटे ते प्रतनी अपेक्षा तेम कहेवी पण बीजा ग्रन्थनी अपेक्षाए परिमित भव ज जमालिने कहेवा एहवं परमगुरू वचन उवेखी अन्यथा एकांत अनंता भव जमालिने कहे छे ते नव घटे. ४९
तिर्यग्योनिक' शब्द ज सिद्धान्तशैलीए अनंत भवनो वाचक छे' एवं लख्यु छे तिहां 'तिर्यग्योनीनां च' ए तत्त्वार्थसूत्रनी साक्षी दीधी छे ते न घटे, जे माटे तत्त्वार्थसूत्रमा कायस्थितिने अधिकारे तिर्यंचने अनंतकाल स्थिति लखी छे पण तिर्यग्योनिक' शब्दशैलीए अनंता भव आवे एवं किहांई कह्यु नथी. ५०
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