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________________ ४६१ विजयसेनसूरिना दश बोल (धर्मसागर उपाध्याये जे अनेक प्ररूपणाओ करी आखा श्वेताम्बर संप्रदायमां कोलाहल उपजाव्यो हतो ते संबंधी विजयसेनसूरिए दश बोल जाहेर कर्या हता ते एक प्राचीन हस्तपत्र परथी उतारी अत्रे मूक्या छे.) - [आ बोल विजयसेनसूरि वती बीजा कोईए जाहेर कर्या होय एवो पण संभव छे. "सर्वज्ञशतक' उपाध्याय धर्मसागरनो ग्रंथ छे. आ बोल विजयसेनसूरि (सूरिपद सं.१६५६) सागरमतने मान्यता आपता हता ते संदर्भमा जाहेर थया जणाय छे. जुओ 'बीजां केटलांक आज्ञापत्रो'नी संपादकीय नोंध. - संपा.] श्री हीरविजयसूरि प्रमुख पूर्वाचार्य इम कहइ छइ जे खरतर प्रमुख मोक्षनई अर्थि जीव मुंकावइ, सील पालइ, तप करइ, श्री वीतरागदेवनी पूजा करइ इत्यादिक मार्गानुसारी धर्मकर्त्तव्य अनुमोदवानी ना नथी, अनइं सागर तु इम कहइ जे अनुमोदीइ नहीं. ए प्रथम बोल. १ तथा श्री हीरविजय प्रमुख इम कहइ छइ जे श्री भगवतीसूत्र तथा श्री महावीरचरित्र प्रमुख शास्त्रनइ अनुसारि जमालिनइं पनर भव जणाइ छइ, अनि उपदेशमालानी सिद्धर्षि टीकानइं अनुसारि जमालिनइ अनंता भव जणाइ छई, पछइ केवली कहइ ते प्रमाण, अनइं सागर तु इम थापइ छइ जे जमालिनईं अनंता ज भव कहीइ, अनइं पनर भव कहइ छई ते अनंता तीर्थंकरनी आशातना करइ छइ एह, पोताना कीधा ग्रंथमाहि पणि लख्यं छइ सागरइं. ए बीजुं बोल. २ तथा श्री हीरविजयसूरि प्रमुख इम कहइ छइ जे खरतर प्रमुखनइं निन्हव न कहीइ, अनइं सागर तु इम कहइ छइ जे निन्हव कहीइ. ए त्रीजुं बोल. ३ तथा हीरविजयसूरि प्रमुख इम कहइ छइ जे खरतर प्रमुखनइ देहरइ देव जुहारइ देव पूजइ तेहनइं लाभ हुइ, अनइं सागर तु इम कहइ छइ जे खरतर प्रमुखनां चैत्य होलीना राजा सरिखां. एहवं ग्रंथ मध्ये पणि सागरिं लख्यु छइ. ए पांचमु बोल. ५ तथा श्री हीरविजयसूरि प्रमुख इम कहइ छइ जे उत्सूत्रभाषी आलोया पडिकम्या विना मरइ तेहनइ संख्यातो असंख्यातो उत्कृष्टो अनंतो पणि संसार हुइ, अनईं सागर तु इम कहइ छई जे उत्सूत्रभाषी आलोया पडिकम्या विना मरइ तेहनइ नियमई अनंतु संसार हुइ. ए चुथु बोल. ४ तथा श्री हीरविजयसूरि कहइ छइ जे खरतर प्रमुख जैन तथा मिथ्यात्वी नुकार गणइ तेहनईं लाभ हुइ; अनइ सागर तु इम कहइ छइ जे खरतर प्रमुख नुकार गणतु अनंतु संसार वधारइ. एहवू पोताना शास्त्रमांहि पणि आण्युं छइ. ए छठु बोल. ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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