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________________ ऊना संघ तरफथी विजयसिंहसूरिने विज्ञप्तिपत्र ४४९ प्रमुख समस्त श्री संघनी त्रिकाल वंदना अविधारवी. यत: श्री पूज्यजीना चरणकमलप्रसादथी सुखसाता-स्युं धरम ध्यान निरवहई छइ. श्री पूज्यजीना शरीरना सुखसमाधना लेखप्रसाद करिवा जिम संघनइ संतोष ऊपजइ अपरं श्री पर्जूषणा पर्व महा महोछव सेती आराध्या छइ तथा सतरभेद पूजा ७ थइ छइ. पूजा संक्षेपइ ५ देहरे ५०, ५० एक, एक समस्त देहरई थइनइ बसई अनइ ५० थइ छइ अपरं चेत्य परिवाड सरव देहरईं थूभईं महा महोछव पूरवक हुया छइ तथा पाखीना पारणा समस्त चाले छइ. तथा संवत्सरीना पारणा सा. कीका हीरजी दीवना श्रावकई कराव्या छई तथा पारणा करावी ऊपरि श्रीफल आप्या छइ, शतशत नइ माजनइ श्रावक श्राविकानई समस्तनइ आप्या छइ. तथा श्री (पू)ज्यजीने आदेसई गणेश श्री हरखविजय ठाणुं २ साथे पधार्या तिणईं समस्त संघने संतोष ऊपना तथा गणेस घणुं वइरागी संवेगी, जे जेहवा श्री पूज्यजीना शिष्य जोइयंई तेहवा छइ ते अविधारवा. तथा समस्त ऊनाना संघ श्री अज्झाहरा पार्श्वनाथनी यात्रा करइ छइ १० दशमइ तिहां श्री पूज्यजीनइ संभारइ छइ. तथा दिनप्रतिइ परम भट्टारक श्री श्री श्री हीरविजयसूरिनुं थुभ वांदइ छइ तिहां श्री पूज्यजीनइ संभारइ छई ते अविधारवं. श्री पूज्यजीना चरणकमल भेटवानी उत्कंठा छइ छे ते माटइ श्री पूज्यजीयइ श्री सोरठ देश पाठन करिवा, श्री शेजेजउ श्री गिरिनारि श्री अजाहर पार्श्वनाथ जुहारिवा पधारिवू जिम शोरठ देशना संघनइ परम संतोष ऊपजइ ते अविधारवू. तथा श्री पूज्यजीना समस्त परिवारनइ ऊनाना संघनी त्रिकाल वंदना प्रसाद करवी. संवत् १७०५ वर्षे आसू वदि ७ दिने. [जैनयुग, वैशाख–जेठ १९८६, पृ.४००-०१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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