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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह देवल दिगंबराके सात, या विध जैनको विख्यात, बरनुं पुरा• अहिठान, ज्यामें सहस लाखो थांन. ७२ पुरा युहि केहेंवत होय, वस्ति सेहेर सरसि सोय, च्यारो तरफ मिलकें सार, वस्ति पुरांकी अढार. ७३
दोहरा गोपीपुरा फिर साहपुर, हरिपुरा रूघनाथ, मेर मेंबर रापुर, मंछ बेगम साथ. १-७४ सलतपुरा सगरामपुरा, रूस्तापुर सुलतान, रूदरपुरा अरू नानपुर, नवापुरा बड थांन. २-७५ सग ईदरपुरा, पुरे अठार बखांन, बडे बडे थानक सरस, भूम सात आरांम. ३-७६
पुन: गज्जल बरनुं बाग वन आराम, मोजी करत हे विसरांम दाखत फूलसें फूलेक्, नीके रसभरे झूलेक्. ७७ फिरते बाग बहो दूजेक्, मानुं सुरसके कुंजेक् नीली भूम हरियालीक्, निरखत दृष्टिभर भालीक्. ७८ उंचे ऊठते कारंज, ख्याली खेलते सेतरंज, फिरंगि लोकके कमठान, होते राग छत्तिस तांन. ७९ पुरमें अठारौं ही बरन, सबके जूजूए आचरन, सूरत नयर चावा सेहेर, ज्या पर देवताकी मेहेर. ८० नव लख घरां वस्तिमान, ज्याको कुंपनी राजान, कीनो -सेहेंर बरनन एह, अपनी दृष्टि देख्यो जेह. ८१ करके कृपा तपगछभान, आंना सेंहेंर अपनी जान, जांणी संघ अपनो खास, आना पूज्यजी चोमास. ८२ सतोतर संवतां अठार, मगसिर मास द्वितियां सार, बरन्ये . दीपश्री कविराज सुरत सेहेरको साम्राज. ८३
कलस : छप्पय रि सुरत सेंसेर, ता बरनन इह कीनो, सब सेहेरां सिरताज, सुरत सेंहेंर नगीनो;
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