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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
बहोविध चोक्की हें रीज, बरन जात हें तजवीज, मुगलीसरा हे एक पास, मुगली लोकके आवास. ४२ चिनाइ मालकी दुकान, पटवे रेसमी मक्कान, बेठे बहोत हजवाइक, के माल बतलाईक्. ४३ मिलती नवनवी चीजांक, देखन होत हे रीझीक्, नाणावट्टमें फिर आय, केलापीठमें मन भाय ४४ भांतौभांतके मेंवेक, लाला लोक बहोले चेक, कमरख कमरखां खिरनीक्, किसमस स्वादसें बरनीक्. ४५ सीता नामके फल चंग, जांबू फन्नसे नारंग, दाडम फालसे अन्नास, ज्याकी मेंहेर मधुरी वास. ४६ ईक्षू खंड अरू अंबाकू, भरके बेंठते लंबाकू, इंसी बहोत भांतो जात, बरनुं कौन विधसें भांत. ४७ बेठे बहोत तंबोली, लेकर पानकी चोलीक्, अत्तरदार सरिया लोक, बैठे ओल थोकाथोक ४८ बेठे बहोत कंदोई, अछे माल वहां होइक्, बहोविध भांतके पकवान, मिलते बहोत थानोथान. ४९ सूरत सेंहेरकी सोगात, बरफी होत नवनव जात, अझौख पाट्या चकलाक्, गोपीपुराका मेहेलाक्. ५० गोपी साह जिहां रेहेंतेक्, बुजरूक लोक सो केहेंतेक् उनका नामका बाजार, करते खलक वहां वेपार. ५१ संवत सोल अगन्यासीक काला मास गुनरासीक्, से गोपीदास, थापे सूरजमंडन पास. ५२ झवेरी लोक करते मोज, नांही करत किनकी खोज, हीरा परखते हें नंग, मोतीपन्ने पांचो रंग. ५३ पन्ना पिरोजा अरू लाल, लेकर फिरत हें दल्लाल, सबही मांनते निज धर्म, अपने साधते खटकर्म. ५४ छेली मर्द्दबी केतेक्, दांनी दांनकुं देते, कितने वेदके पाठीक, भाषा रचत के ठाठीकू. ५५ जोतष जोतषी जोतेक्, केते निमितिये होते, केते छंदकुं पढतेक्, वादी वादसें भीडतेक्. ५६
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