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खेताकृत अगमवाणी निसाणी
[जैन गूर्जर कविओ' मां कृति नोंधायेली नथी. कृति राजस्थानी-हिंदीमां रचायेली छे अने ऐतिहासिक भाविकथन करे छे. पाबूए सपनामां कहेला आ शब्दो छे एथी कृति खेताकृत गणाय. - संपा.]
आखातीज अठाणवै, आगम पंवे(चे) दीह, पाबूरा फुरमाण सौं एहवी बोली जीह. सुपनामै सुणीया सबद, मुझ वीचकीयो मन, जाणूं घर ऊजड हूवै, वसती हुवै जु वन, अनचिग थ्यो दीसै ईला, सुलसी काइ सडसी, विग्रही इसडो ऊठसी, वडली विगडसी. पडसी ईसडों पीटणो, माहे मुगलाणां, ऊसरै हडो ऊठसी, जुडसी जुमलाणां. खूटिसि दल खूरसांणरा, खूटिसि तुरकाणां, साहिजादा आवटसी, आंका वाचाणां. पातिसाही जातां पगां वडसी निबलाणा, मरसी म्लेच्छ मिरगीयां, गुरूलां महाणां. गुप तीसै गैबी मर्द ऊठिसी उणि ठाणां, चकता सौ निरबाण बुढि, जुडसी जुमलाणां. का पैंतीसे समै जै कोइ जाणै, पडिसी इसडो पीटणो, जालिम जोधाणै. मरसी खत्री मंडोवरौ, थिर काबिल थांणै, पतिसाही पालटसी साका दीवाणै. हेकरसो हुइसी इसी हलचल हीदवाणै, चढि पातसाह चलावसी, राजा कोइ राणै. कोइक गैबी ऊठसी, ओसर उणि ठाणे, उत्तरखंड सौ आवसी, जोधाण सिवाणै. जालिम कोइक जागसी, राठौड घराणे, अवतारी हुई ऊठसी, नर कोईक जाणै.
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