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तपगच्छनी पट्टावली
३८५ जयजयकार थयो. श्री गुरूनी कीर्ति वधी. आम जटीलने अनेक वादे जीत्यो. जटील देश नगरमां फर्यो.
एकदा श्री गुरूए संघने कह्यु, 'आज थकी छ मास संपूर्ण थये मारूं आयु पुरूं थशे, ते माटे मारा मस्तकमां श्री मणि छे ते तमे मरण थया पछी मस्तक मोडी काढी [उरही] लेजो, ते पछी मारा देहनो अग्निसंस्कार करजो.' आथी शिष्य तथा संघे कह्यु, 'बहु सारूं.' केटलेक दीने [योगीए] गुरूनुं मरण जाणी पूर्व संकेते आवी दुधपात्र भरी वेगळो गुप्तपणे रह्यो. गुरूकथनथी कल्पकनो चारे कोर [चहि उपरि] चंदरवो कीधो. बदरीदेवी चितानी पूछवाडे प्रदक्षिणा दे छे एटले ते योगीए वर्षावायुनी उत्पत्ति करी, एवं जाणीने के हुँ मणी लई [मस्तकनी खोपरी] लउं. आथी बदरीदेवीए वायुना जोरे[योगे] पोतानी शक्तिथी योगीने उपाडी एमां [चहि माहि] गुरूनी साथे नांख्यो ते मरण पामी श्री सांडेरा गच्छनो रखवाल यक्ष थयो. देवी गुरू[चिताने नमी स्वस्थानके मुडाहड नगरमा आवी. श्री गुरूनी प्रतिज्ञा बदरी देवीना सहायथी संपूर्ण थई. आ रीते सं.९७१ वर्षमां श्री यशोभद्रसूरि हता एम थयु.
बहुआ किन्न ऋषि खीम ऋषि चोथा श्री यशोभद्रसूरि.
ए बिहु काले प्रणमतां दूरीय पणाशय दूरी. १ इति श्री सांडेरागच्छे श्री यशोभद्रसूरि संबंध.
३२. श्री प्रद्युम्नसूरि : श्री सूरिना उपदेशथी पूर्व दिशामां सत्तर प्रासाद थया. ११ ज्ञानना भंडार लखाव्या. ७ यात्रा श्री सम्मितगिरिनी श्री सूरीए करी.
३३. श्री मानदेवसूरि : श्री सूरिए श्रावकश्राविकाना हेतुए उपधान वहेवानी विधि प्रगट करी.
आ बनेनुं अल्प आयु जाणवू.
३४. विमलचंद्रसूरी : जेने श्री पद्मावतिनी साहायथी चित्रफूट पर्वते सुवर्णसिद्धिनी प्राप्ति थई.
३५. श्री उद्योतनसूरि : श्री सूरिये पूर्व दिशाए श्री सम्मेतगिरि पांच यात्रा करी. पण ए तीर्थ केयूँ छ ?
विंशत्यास्तीर्थकरैरजितादिभिर्यत्र शिवपदं प्राप्तं,
देवकृतस्तुपगणः स जयति सम्मेतगिरिराजा. पुन: एटले सांभळ्यु जे अर्बुदाचल उपर विमल दंडनायके श्री ऋषभबिंब स्थापन करेल छे अने तीर्थ प्रगट कर्यो छे. आ जाणीने श्री सूरिए मनमां चिंतव्यु के -
अष्टषष्टिषु तीर्थेषु यत्पुण्यं किल यात्रया, आदिनाथस्य देवस्य दर्शननोऽपि तदभवेत.
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