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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह एबुं बीजुं नाम प्रगट थयु. ते पहेलां श्री सुधर्मास्वामीथी मांडी ८ पाट सुधी निग्रंथगच्छ एवो नाम कहेवातो. तेने सर्वायु संपूर्ण श्री वीरात् ३७२ वीत्ये श्री सुस्थितस्वामी स्वर्गे गया. पुन: वीरात् ३७९ वर्षे श्री भृगुकच्छ नगरे श्री आर्य खपुटाचार्य प्रगट थया. तत्पट्टे -
१०. इंद्रदिन्नसूरि अने लघु गुरूभाइ बीजा श्री प्रियग्रंथसूरि : त्यां वृद्ध गुरूभाई श्री इंद्रदिन्नसूरि तेहनो कौशिक गोत्र छे. अने लघु गुरूभाइ श्री प्रियग्रंथसूरि गोत्र काश्यप छे. श्री इंद्रदिन्नसूरि विहार करतां मुढ्ढेरी नगरीए पहोंच्या, एवामां श्री महावीर मुक्ति पहोंच्या पछी ४७० वर्ष गया पछी मालव देशमा उज्जेणी नगरमां परमार वंशे राजा श्री विक्रमादित्य प्रगट थयो. तेनो [वर्षमुं] मान कहे छे. श्री विरचिरं (?) पालक राज्य वर्ष ६०, नव नंद राज्य वर्ष १५५, मौर्य राज्य वर्ष १०८, पुष्पमित्र राज्य वर्ष ३०, बलमित्र-भानुमित्र ए बे कालिकाचार्यना भाणेज तेनो राज्य वर्ष ६०, नरवाहन राज्य वर्ष ४०, गर्दभिल्ल राज्य वर्ष १३, शकना राज्य वर्ष ४.
श्री वीर मुक्ति गया पछी ४७० वर्षे दक्षिण दिशामां श्री गोदावरी नदीने कांठे पैठाणे भुजंगाधिप सांनिध थकी श्री शालिवाहननो शक प्रगट थयो. एवं ४७० वर्षे. श्र वीरप्रभु मोक्ष गया पछी त्रणसे अने वीस वर्ष गया पछी मौर्य राजाने राज्ये श्री आर्य सुहस्तिने संघाडे पहेला कालिकाचार्य प्रगट थया. तेणे सौधर्म इंद्र आगळ निगोदनो विचार कह्यो. पुन: पनवणा उपांगसूत्रना कारक ए चोथा युगप्रधान जाणवा.
पुन: बीजा कालिकाचार्य वीरात् ४५३ वर्षे बलमित्र अने भानुमित्र राजाना समये दक्षिण दिशामां गोदावरी नदीने तटे पैठाणे राजा श्री शालिवाहनना आग्रहथी [एकतालीस] जैनाचार्यनी साक्षीए श्री पर्व आव्या होते यक्षोत्सवे महा उपद्रवे श्री पर्वनो अंतराय जाणी भाद्रवा शुदि ५थी ४ना पर्युषण कर्या. एहना विस्तारथी कालिकाचार्यनी कथाथी जाणवो. श्री वीरात् ४४१[४२१] वर्ष इंद्रदिन्नसूरि स्वर्गे गया. हवें लघु भाईश्री प्रियग्रंथसुरी वीरशासने प्रभाविक थया. तेनो संबंध कहे छे.
प्रियग्रंथसूरि : अजमेर गढनी तलेटीमां हर्षपुर नगर वसे छे. एकदा त्यां विहार करतां श्री प्रियग्रंथसूरि आव्या. एवामां छागने होमवाने सकल मंत्रशास्त्रना जाण यज्ञ करवा उद्यमी थया. एटलामां जैनी गृहस्थे गुरू महाराजने यागनी वार्ता कही त्यारे श्री गुरू महाराजे सूरिमंत्रथी वाश मंत्री श्रावकने दई कह्यु, 'जे वास ए. छे ते तमे बोकडाना माथे नांखजो जेथी एने अभयदान थशे अने श्री जिनशासननी उन्नति थशे'. श्रावके गुरू महाराजे कडं तेम कर्यु एटले बोकडो देवाधिष्ठित थयो, आकाशे जइ उभो रह्यो. यागकृत वाडव प्रति मनुष्यभाषाए बोल्यो, 'हे विप्रो ! तमे सांभळो. जेटला पशुना देहनी
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