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धर्मसागर उपाध्याय रास तव कहइ तपगछगुरू, ए श्युं कर्दा मुनिवरू,
श्रुतधरू वलि वांदस्यो वेगि-स्युं ए. १३३ श्री वाचक वलतुं कह्यु, देवसपन आगइ लद्यु,
तेथउं छत्रछायाइं तुम तणी ए. १३४
दूहा छत्रछायाइं तुम तणी, बइसवं मुझ एक वार,
तेहर्बु तपगछधणी हवइ, किहां बीजी वार. १३६ गुरू जाइ चउमासु आपी[वी]आ, खंभनयर तिहां थापीआ,
व्यापीआ निर्मल जसमहिमा घणा ए. १३७ रंगइ रहइ चउमासि, खप भेटइ चिंतामणि पासइ,
आस ए पूरइ श्री संघनी घणी ए. १३८ वखाण करइ मनरंगिइं, नव नव देशना भंगइ,
चंगिइं ए श्री संघना चित ठारवा ए. १३९
. (दुहा)
एक दिन शासनदेवता, आवा सपन मझार, जिनशासन हितकारणइं, कहइ कब वन (कथन ?) सुविचार. १४०
राग पर्जिओ जागि मुनिवर सुर वंदइ, इम मानकय वनि जलि रे,(?) सुपन पन एक ज तिहां दीर्छ, दीवइ नदी दावेलि रे. (?) जागि० १४२ पंडित श्री गुरू लब्धिसागर, तेडी वदइ मुनिराज रे, काज करस्युं आपणुं हवइ, सारो हमारां काज रे. जागि० १४३ पंडित ज्ञानविमल प्रमुख यती, तेडावइ उलासि रे, संघवी उदयकरण श्रीमल सहु, संघ आवइ गुरू पासि रे. जागि० १४४ कार्तिग मासईं शुकल चउथईं, आराधन करइ सार रे; नांदि मांडी बिंब आगलि, महाव्रत उच्चार रे. जागि० १४५ साधसाधवि नाम लेइ, खमावइ मुनिराय रे, संघ चउविह सकल जीव राशि-स्युं, लही निरमोह माय रे. जागि० १४६ तिणइ अवसर गुर गुरूजी भाखइ, चिउ अनसना अग्राज रे ? एहनु न विलंब कीजइ, पामीइ शिइ[घ्र ?] शिवपुर-राज रे. जागि० १४७
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