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________________ ३१२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह वादोवाद हो, अवसर ० न आलखु अमूल हो, अवसर ० हो. अवसर० ७ नवकार आंबेल - तप आदें, आप्यां बहु वन दूर मांनपरने पेखुं, लखुं सोना रूपा ने फूलें, वधावें बहू पइसानो न लहूं पार, जाणें वुठो जलधार मांडवीइं मनडुं मोहूं, सघळां करजे घणुं सोहा थुभनी रचना थीर थापी, सुंकुनें जण सुंभ आपी सनात्र वाधें रंगरोल, वागां जीहां जांगी ढोल हो, अवसर० उदयरतन वाचक इम बोलें, ना आवे कोइ हंसने तोलें हो. अवसर० ९ • श्री उदयरत्ननी सज्झाय लखी छे. हो, अवसर ० हो. अवसर० ८ Jain Education International हो. अवसर० ६ ३. अज्ञातकृत उदयरत्न सज्झाय सकल वादी सीरसेहरो, श्री उदयरत्न उवज्झाय, ध्या गुरु ध्यानमां एकमनें एकासनें सेवीए गुरू नीकलंक. ध्याउंο सदा दीवो गुरू छे संसारमां सार, ध्याउंο गुरू सूरज गुरू चंद्रमा अज्ञानतिमिर हरनार. ध्याउंο प्रथम ते......... [जैनयुग, वैशाख जेठ १९८६, पृ.४०३-०४] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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