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________________ २९२ धर्मदासकृत हीरविहार स्तवन [कृति सं.१६७६ जेठ सुद १५ना रोज रचायेली छे. कर्ता विजयदेवसूरिना भक्त कोई श्रावक होय एवं जणाय छे. आ कृति 'जैन गुर्जर कविओ' मां नोंधायेली नथी. पण देशाइना आ संपादन पूर्वे मुनिश्री विद्याविजये संपादित करेली 'हीरविहारस्तव'ने नामे जैन सत्यप्रकाश, ओगस्ट तथा ओक्टोबर, १९३६मां छपायेली छे. अहीं पाठशुद्धिमा एनो क्यांक लाभ लई शकायो छे. ताजेतरमां 'हीरस्वाध्याय भा.१' (संपा. मुनि महाबोधिविजय, सं.२०५३)मां देशाइनी वाचना ज पुनर्मुद्रित थई छे. कृतिमां वस्तुत: जे जिनमंदिरोमां हीरविजयसूरिनी मूर्ति के पादुकाओ स्थापित थई छे तेनुं वर्णन छे. - संपा.] महोपाध्याय श्री ५ नेमिसागरमणि गुरूभ्यो नम:. सरसती भगवती भारती ए, समरी सारद माय, रचसिउं हीरविहार स्तवन. वर दिउ मुझ माय. १ शेचेंजमंडण ऋषभदेव, अष्टापदि स्वामी, आबू हीरविहार सार; प्रणमुं शिर नामी. २ नाभि-नरेशर-कुलतिलो ए, मरुदेवी-मल्हार, युगलाधर्मनिवारणो ए, त्रिभुवनजन-हितकार. ३ प्रथम राय अणगार प्रथम, भिक्षाचर केवल, प्रथम तीर्थंकर प्रथम धर्मप्रकाशक निर्मल. ४ समोसर्या शेजेजगिरि, अष्टापदि सिद्ध, आबू हीरविहारे मूरति, महिमा सुपसिद्ध. ५ ध्याउं श्री नवकरामंत्र, शेत्रुजगिरि यात्र, देव आराहो वीतराग, निर्मल करो गात्र. ६ महिमावंत ए त्रिणि तीर्थ, चउथो हीरविहार, हीरविजय सूरीसरू ए, वयर सम अवतार. ७ वस्तु विमलगिरिवर विमलगिरिवर रिसह जिणदेव, समवसरण देवहिं मिली, रचिउं वार पूरव नवाणुं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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