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________________ २८६ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रः ढाल : राग सामेरी जगजीवन परउपगारी, आविउ पूज्य महाव्रतधारी, देखी संघनइ हर्ष न मावइ, मंडाणि गुरू पधरावइ. १९ मोटा श्रावक साह सारंग, संघवी जयवंतनइ मनि रंग, साह जावड सोनी सहसधीर, संघवी उदयकरण गंभीर. २० साह जयवंत नइ साह राज, करई धर्म तणा बहू काज, जूउ उदयकरण भंडारी, करइ भगति सहिगुरनी सारी. २१ दोसी वछा झीला भाकराज साह पतीआ परिख कीकराज, वुहरा जयराज साह महिपाल, एहवा श्रावक बहुत दयाल. २२ जिम मंदिर गुरू पधरावइ, भरी माणिक मोती वधावइ, सोहागिणि मंगल गावइ, इम खंभायति रूयडुं भावइ. २३ सागोटइ उपासरइ सोहइ, श्रीपूज्य बइठा भवि पडिबोहइ, निति उछव घरिघरि दीसई, गुरू देखी हीयडुं हीसई. २४ दूहा बिंबप्रतिष्ठा जिन तणी, जिनशासनि मंडाण, सीतल जिनवर थापीआ, वाजइ ढोल नींसाण. २५ बिंब बिसई पनर अवर, सुरनर जोइं मुनिवृंद, वासखेप अंजन ठवे, श्री हीरविजय सूरींद. २६ ढाल एह ज सुणी वांणी श्री मुनिराज, ध्यन ते नर करई एहवां काज, संघवी उदयकरण भाकराज, भाविं वंदि श्री ऋषिराज. २७ जइ वीनती करी पूज्य पासइ, लाभ जांणि रही चउमासइ, जेठोडी परूहण भरीया, रूडइ वाय सुवाइं तरीयां; गया चोर कठोर हीनोरा, ते तु चरणप्रसाद गुरू तोरा. २८ राग भीम-मल्हार अनोपम मास अषाढ के, आसा सहू लही रे, कइ आस सहू लही रे, गगनि धडूक्या मेह कि, वीज झबूकइ सही रे (२). २९ मोरा करइ कंगार के, बापी पीउ करई रे (२), तेणइ समइ पीउ परदेशि कइ, कामनी मनि धरइ रे (२). ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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