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________________ २८२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह अंत्य समय जिहां मुझ संभारिउ, धन्य हीरजी गुरूराजो जी, पणि मईं चरण ते नवि भेटी शक्यां, ए कांई मुझ अंतरायो जी. श्री. १४७ संघ सहू मिलि गुरूनईं वीनवईं, म करो हीरनो विखवादो जी, जिणि तुह्म अह्मनईं रे थापीआ, हीरनो महाप्रसादो जी. श्री. १४८ शोक निवारो रे सासन-राजीआ, प्रतिपालो सहू संघो जी, अति आग्रह अवधारि गछधणी, करई जिनशासनई रंगो जी. विवेकहर्ष जग जंगो जी. श्री ही० १४९ ढाल : राग धन्यासी जयउ जयउ जगगुरूपटधरो, श्री (हीर)विजय गणधार जी, साह अकबर दरगाह(बार)मां, जिणिं पाम्यो जयजयकार जी. जयउ० १५० जिहां लगि मेरू महीधरो, जिंहां लगि गिरवरनी राजी रे, चिरर प्रतपउं गुरू गच्छधणी, श्री विजयसेन सूरीस जी रे. जय. १५१ हीर पटोधर उगिउ, प्रगट प्रतापी सू(र) जी रे, कुमतितिमिर दूरईं करईं, भविअण सुख भरपूर जी रे. जयउ० १५२ वीजापुर वर नयरमां पांडव नयन वरीस जी रे, हर्षआणंद विबुध तणो, सीस दीईं आसीस, विवेकहर्ष कहईं सीसजी रे. जय. १५३ - इति श्री हीरविजयसूरि जगगुरू संपूर्णम. पंडितोत्तम पंडित श्री पं. श्री अमरविजयगणि शिष्य मुनि गुणविजय लिपिकृतं श्री विद्यापुरे पुरोपकाराय. (प.सं.६-१५, मारी पासे.) [जैनयुग, अषाड-श्रावण १९८६, पृ.४६०-६७] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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