SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानसागरकृत आबूनी चैत्यपरिपाटी तोरण कोर्यां त्यांहि, थंभ कोर्या वली, हो लाल, थंभ० पंचाली तिणि मांहि, हेल दिल [ दिइ] लली-लली, हो लाल, हेल० ९ नवसई नव्यासी बिंब, नेह भरि निरखीयां, हो लाल, नेह० पामि प्रीति अचंभ, हीउं मनि हरखीउं, हो लाल, हीउं० १० तीनसें च्यालीस थंभ, आरासमय अति भला, हो लाल, आरा० सोहि सोवनमय कुंभ, दंडधज गुणनिलो, हो लाल, दंड० ११ देहरी पंचावन देव, जुहारी उल्लसिउ, हो - लाल, जुहा० त्रिभुवनपति जिनदेव, ऋषभ मुझ मनि वसिउ, हो लाल, ऋ० १२ ढाल : नीलडी वयरणि होई रही ए देशी - Jain Education International २३७ लुंगवसही हवई, भलई भेटिउ हो प्रभु नेमि जिणंद कि, सरस सलूणउ साहिबउ, ब्रह्मचारी-चूडामणि, निकलंकी हो यादवकुलचंद कि, सरस सलूणउ साहिबउ. १३ ब्रह्मचारी-चूडामणि, अमृतरस हो आंखडीए आज कि, पइठउ पूरण फल लहिउ मई तो जुहारिउ हो युगति महाराज कि, सरस सलूणउ साहिबउ. १४ निरखी निरूपम कोरणी, मन मोरूं हो तिणि सिउं लयलीन कि, धन्य कमाई तेहनी, जिणहरनी हो रचना जिण कीध कि, सरस० १५ निरख्या नवलखि आलीआ, गजशालाई हो चउमुखि अति चंग कि, निरूपम चउपन देहरी, तिहां जुहारी हो प्रतिमा पुन रंग कि, सरस० १६ पांचसई ने त्रहिपन भली, जिणप्रतिमा हो एणें प्रासाद कि, थंभ बिसें पांत्रीस तिहां, भलां कोर्यां हो लीइ गगन सिउं वाद कि, सरस० १७ भीमसाह गुजर तणइ, हवइ भेटइ हो देहरइ भगवंत कि, पीतलमइ श्री ऋषभजी, जगजीवन हो जिन करूणावंत कि, सरस० १८ प्रतिमा सवि मली एकसउ, इणि देहरइ हो जुहारी उल्लास कि, खरतरवसहीईं वली, में तो वंद्यां हो तिहां नवफण पास कि, सरस० १९ संघवी मंडलीकईं भलउ, तरभुंइइ हो चउमुख कीउ एह कि, एकसो निं चउत्रीस तिहां, जिनप्रतिमा हो निरखी धरी नेह कि, सरस० २० एकसउ च्यालीस आगला, छइ खमणा हो वसहीना बिंब कि. छूटक त्रणि देहरी तणां, बिंब सत्तर हो वांद्या अविलंब कि, सरस० २१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy