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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
भाषा
हवईं जइइं गिरिवरनी पाजइं, निरमल नीर नदी तिहां वाजइं, गाजई जिम जलधार तु जयु जयु. गा. जिमणइ पासइं तुरंगमसाला सविडं पासे परवतमाला, दीसइ सरस रसाल तु जयु. ८ आगलि पहु पहिली पोलइ, जइइ साम्हा सिहर अछई सवि ओलइ, झोलि मन मोहंति तुजयु; बीना पालइ छई ढाकली अ. गंइणि मघनी छइंतिहां फलीअ, वलीअविनोद करंनि तुजय. ९ ऊंची त्रीजी पोलि नवेरी, तेह ऊपरि वाजइअ नफेरी, सेरि सवि दीसंति तु जयु; नंदीवृक्ष तणुं तिहां ठाम, डावइ लंबोदर अभिराम, लोक ज लिंइ विश्राम तु जयु. १० गढ पासई पाणीनी वापी, महिमंडली जे रही छई व्यापी, थापी श्री नरराय तु जयु; सांमलीआई सिहर तु मोटउ, ऊपरि पाट तणु छइ ओटउ, खोटउ नही ए ठाम तु जयु. ११ दाहिण पासि सिहरि सोमाई, लोक चडइ जोवा तिहां धाइ, माई इम जपंति तु जयु; मारगि मोटउ खेतलवीर, तेल सीदूरि भरिउंअ सरीर, कणवीरे सोहंति तु जयु. १२ नानाविध दीसई आराम, कोकिल मधुर तणा विश्राम, ठाम सवे अभिराम तु जयु; पाजइ गेलि करंता चडीई, हरखि करी नवि लागइ घडीइ, पडिइ नरगि न ताम तु जयु. १३ मोर तणा किंगारव राजइ, दहदिसि नीझरणां घण वाजइं, गाजइ गयण सुरम्म तु जयु. १४ अनुक्रमि चउथी पोलि पईठा, जिणह भूअण निअ नयणे दीठा, मीठा हूआ नरजन्म तुजयु. १५
गिरिहि चडीइ गिरिहिं चडीई गुरूअ गजगेलि, पोलि-ओलि सवि दीपती धरणि वार प्राकार राजई, लंबोदर नंदितरू खित्तवाल नीझरण राजइ; सवि तरूअर बहु फलि फल्या कोकिल तणा निनाद, पोलि परव जव जोईआं तव दीठा प्रासाद. १६
भाषा पुरिसा वावि पहू अभिराम जाम ताम ते अतिहिं ऊंडी; तसु तलि पंडर वर तु संमि खेलावई सुंडी, हाट-ओलि माहि राजपोलि घडिआलुं मंडिअ, कंचण-कलसिं लहकंति आगलि चउखंडिअ, मंदिर माहि खडोखलीअ वापी कूपाराम, धवलगृह दीसइ इस्यां ए निरमालडी ए जिस्यां हुई सुरठाम. १७
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