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________________ सुधानंदनसूरिशिष्य (?) कृत ईडरगढ चैत्यपरिपाटी सिरि जियशत्रु नरेस वंस गयणंगण-भासण, भाणु समाण समाण लोक मन्निअ बहु सासण; सोवन कंतिई झलकंतउ, गयवर लंछन जास, सो सामी कामी अ-करण, निरमालडी ए निरमल नाण-पयास. १७ ओस वंस वरकमल विमल कलहंस समाण, माण न आणई निय चित्त जिण मन्नइ आण; नियकुलकैरव-कमलखंड - उल्लासण राज, धनराज; धम्मकज्जि बहु बुद्धि शुद्धि सोनी सीतू घरणी तस उदयवंता; सीलाई सीताचार, विनयविवेक विचारपणइ निर० लच्छि तणउ अवतार. १८ तास उयरि अवतरिआ तिन्नि कुंअर गुणवंता, धरमवंत धनवंतपण दिनि दिनि गोविंद गोइंद परि करइ ए सोनी ईसर अलवि उदार चित्त नई नरराज; काज करइ पुण्यह तणां महुतिं मेरू समाण, दाण माण दिई अति घणा ए निर० जाणईं जाण अजाण. १९ पतराज, Jain Education International वस्तु तिणि बंधव तिणि बंधव करई शुभ काज, संघ सहित तीरथ तणी करइ जात्र सनात्र अनुपम; कलियुग कृतयुग परि करई, वस्तुपाल तेजपाल नर सम; assनगरि जिण (ऋष) भनी, करावई पईठ, वित्त वेचइ आदर घणु, उत्सव करईं गरिठ. २० जिणप्रासाद कराविवा तु भ०, सोनी इसर मनि रंग; अभंग ठाम अवनि अछइ तु भ० इडरगढ गिरिशृंग. २१ तिहां प्रासाद कराविउं तु भ० कुमरविहारह पासि; अनुपम रूप निहालतां तु भ० थाइ मनि उल्लास. २२ संवत पनर त्रीसोत्तरइ तु भ० कीधउ जस आरंभ; मंडपि जनमन मोहिउं तु भ० कोरणि तोरणि थंभ. २३ धवलपणइ अति झलहलइ तु भ० ऊंचपणइ कैलास; जस रमणिम चित्त [इ] कीइ तु भ० सुरसुंदरि रमइ रास. २४ For Private & Personal Use Only २१९ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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