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२१३ जगा-गणिकृत सिद्धपुर चैत्यपरिपाटी
__ (सिद्धराज जयसिंहे पोताना नामथी आ सिद्धपुर वसाव्युं ने ते सरस्वतीना कांठे गुजरातनी राजधानी पाटण पासे. अहीं सिद्धराज जयसिंहे रुद्रमाळ नाममुं प्रसिद्ध शिवालय कर्यु तेना अवशेषो हाल छे, पण तेणे बीजां करावेलां धर्मालयो ‘सिद्धविहार' 'राजविहार' आदि जैन देवालयो वगेरेनो नाश मुसलमानो आदिथी थयो छे. आ सिद्धपुरमां हीरविजयसूरिना समयमां तेना शिष्य कुशलवर्धनगणिए जे जैन चैत्यो हतां तेनुं कंईक वर्णन आ स्तवन सं.१६४१ना भाद्रपद शुदि ६ने दिने रची आप्युं छे.
आनी जूनी लखेली प्रत अने ते परथी करेली मुनि पुण्यविजयनी नकल बंने श्री जिनविजय पासेथी मळतां बंने पुन: सरखावी नकलने संशोधी-सुधारी अत्र मूकेल छे.)
[कृति वस्तुत: कुशलवर्धननी नहीं पण कुशलवर्धनशिष्य जगा-गणिनी छे ने कुशलवर्धन पण हीरविजयसूरिना शिष्य नहीं पण उदयवर्धनना शिष्य छे. हीरविजयसूरिनो उल्लेख गच्छनायक तरीके छे. जगा-गणिनी कृतिओ सं.१६३९थी १६५९नां रचनावर्षों बतावे छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ भा.२ पृ.१८७-८९ तथा गुजराती साहित्यकोश खं.१ पृ.२००-०१. ___अहीं हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरनी हस्तप्रत क्रमांक ९२७१नो पाठशुद्धि अने पाठांतरमां लाभ लीधो छे. – संपा.]
ॐ नमः
सयल जिणेसर नमिय पाय सरसति समरीजइ, श्री गुरूचरण नमी करी मनि हरख धरीजइ; दोय कर जोडी करिसु हेव वर चिय-परिवाडी, जिम वाधइ जिनधरम पवर तरूयर वनवाडी. १ जंबूदीविहिं भरतखेत्र मझिम खंड जाणुं, ते माहे छईं नयर घणां ते पार न जाणुं; नयर अनोपम अतिविसाल वाडी वनराजी, कूप सरोवर वावि तणी सोभा छई ताजी. २ राजई जिहां वर हाटश्रेणि मढ मंदिर दीपई, न्यायवंत ठाकुर भलु वइरी सब जीपई; ववहारी धनवंत वसई दानिं करि सूरा, मान मुहुत पांमई घणां बहु संपति पूरा. ३
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