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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
२. शत्रुजयमंडण स्तुति शेर्जेजइ साहिब आदि जिनंद, जस मुख सोहइ पूनिम-चंद, दरिसण परमाणंद, नाभिराय-कुलि-कमल-दिणंद, मरूदेवी मातानो नंद, वंदई हीर सूरंद, सीरोही नयरी सिणगार, मोहन मूरत जास उदार, सुख-संपति-दातार, महिमंडल महिमा-भंडार, प्रणमुं भाव धरी ते सार, सेवकजन जयकार. १ श्री शेजो नइ गिरनार, आबु प्रमुख जे तीरथ उदार, राजगृहि वैभार, श्री हीरविजयसूरि गणधार, थाप्या जे वलि बिंब अपार, सीरोही प्रमुख मझारि. अष्टापद नंदीसर बेइ, जे नमतां शिवपद-सुख देइ, तीरथ विशेष कहेइ, इम वंदु वली अवर जि केइ, तिहु(य)ण माहिं जिनवर-चेइ, ते सवे भाव धरेइ. २ अरथ सयल जे जिनवर जाणि, भविक-जीव-हित मनमां आणि, भासइ केवलनांणि, गणधर गुंथइ तेह विनाणि, द्वादशांगि तेह कहाणी, अरथ-रयणनी खाणि. जे सेव्यइ लहीइ शिव-रांणि, श्री गुरू हीर सूरिंद वखाणी, भाव भणई भवि प्राणी, पापपंक धोवानुं पाणी, अत मिठि जिम साकर वाणि, ते वंदुं जिन-वाणी. ३
आदिदेव-पद-पंकज-सेवा, करवा अहनिसि जेहनइ हेवा, समकित-दृष्टि देवा, सावधान संघ-विघन हरेवा, धर्म तणुं वलि साजि करेवा, बोधबीज पणि देवा. श्रीगुरू हीरविजय सूरीश, विजयसेन गुरू गच्छाधीस, विजयदेव मुनीश, तेह तणी पूरवो जगीश, श्री कल्याणविजय गुरू-सीस, इम जंपइ निसदिस. ४
- इति श्री शेजूंजय मंडण स्तुति.
(उपरना स्तवन लखनारना हस्ताक्षरमां, एक गुटकामां, पत्र २७-२८, सुरतना वकील रा. डाह्याभाइनो संग्रह)
[अध्यात्मकल्पद्रुम, प्रका. जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, पृ.५३-५५]
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