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________________ धनविजयकृत बे नानी कृतिओ १९१ ढाल सिद्धाचल सिंहासनइ, बइठो हठ करी देव ! भावभगत बहुला धरइ, सारइ सुरनर सेव, तुं जगरंजन राजीउ. २५ देश देशना संघवी, सीमाढा भूप, भेट करइ भावइ करी, तुं छइ अकल सरूप. २६ तुं० छत्र-त्रये सिर सोभतां, चामर जुगल ढलंत, एक एक पइं दीपतां, बारइ सभा मलंत. २७ तुं० याचक तुझ पोलइ रह्या, पामइ लाख पसाय, हयवर गयवर मलपता, मणी कनक कभाय. २८ तुं० पाप-चोर पइसइ नही, भरइ पुन्य-भंडार, वाजां वाजइ नवनवां, नित तुझ दरबार. २९ तुं० खिमा-खडग करइ झलकतुं, पर्यो शील-संनाह, अढार हजार रथ सारथी, संयम-रमणीनो नाह. ३० तुं० करम वयरी जे वंकडा, ते दूर पलाय, जयलक्ष्मी पामी करी, अरिहंत कहाय. ३१ तुं० जाइ जूइ नइ केतकी, वली वेलि गुलाल, कृष्णागरू बहु महमहइ, केशर अंगइ लाल. ३२ तुं. चूया चंदन मसमसइ, मृगमद घनसार, गीत-गान गुणीजन कहइ, आगल नाटिक सार. ३३ तुं० मोटो मुगट माथइ धरइ, बाजुबंध उदार, बांहइ बेहु बइरखा, हइइ हार उदार. ३४ तुं० सूरय-कुंड सोहामणो, पद्मद्रह अवतार, भविका! श्री शत्रुजय सेवयो, उल्लाखा झोल अति नीरमलि, रसकुंपि परिइ सार, भविका ! श्री शत्रुजय सेवयो. ३५ चेलण नाम तलावडी, अमृतकुंड समान, भ०, सिद्धवड अति विस्तों , जंबुवृक्ष समान. भ० ३६ इम सकलतीरथराज राजा श्री शत्रुजइ मई सुण्यो, वर शिखर शोभी ऋषभ मोभी लाभ-लोभइ मइ थुण्यो. सिरि हीरविजय सूरंद सहगुरू सीस सोभाकारिको, श्रीकल्याणविजय उवझाय सेवक, धन मनवंछीय-दायको. ३७ - इति श्री श→जयस्तवन संपूर्णम्. मुनि वीरविजयलिखितं. माट बंदिरे. (एक गुटकामां, पत्र २४थी २७, सुरतना वकील रा. डाह्याभाइनो संग्रह.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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