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________________ १८० प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह ८. उदयरत्नकृत भाभा पारसनाथ- स्तवन [कविपरिचय माटे जुओ ‘सिद्धाचलमंडन ऋषभ स्तवन.' आ कृति सं.१७७९मां रचायेल छे अने ‘उदय-अर्चना' (संपा. कांतिभाई बी. शाह वगेरे, १९८८)मां प्रकाशित थयेल छे. - संपा.] त्रिभुवननायक त्रिविधि-सं त्रिण काल, राज, भावे ने भेटो रे भाभा पासने रे, समहीतपुरण सुरत सम सारे, राज, सेव्यो रे आपे रे शिवपुरवासने रे. १ सोवन कलसां ने रूपानां कचोलां, राज, न्हाईने पहेरो रे निरमल धोतीयां रे, सूकड केसर फूलडे रंगरोल, राज, प्रेमे ने पूजो रे प्रभुना पनोतीयां रे. २ नरनारि नेह-सुं नित्यमेव, राज, एकरसु विषयरस विसारीने रे, ताहरी आण वहे ततकाल, राज, तुम पद आपे रे भवजलतारणे रे. ३ कोड गमे सेवकनां सार्यां काम, राज, गुणनिधि गुणवंत जे गाजीयो, रे, अणहल्लपूर पाटण माहे अभिराम, राज, भाभाने पाडे रे भाभो राजीयो रे. ४ सतर ओगण्यासीइं उदयरतन उवझाय, राज, भाद्रवा सुद पुन्यम भावे भणे रे, पुजज्यो पुजज्यो पारसनाथना पाय, राज, अमरनी लीला रे जीम वसे आंगणे रे. ५ (मांगरोळ भं.) [जैन गूर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति, भा.५. पृ.११२-१३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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