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मेरुनंदन उपाध्यायकृत अजित-शान्ति स्तव
(रच्या सं.१४३२ आसपास.)
(खरतरगच्छना जिनोदयसूरिना शिष्य मेरुनंदन उपाध्यायनी अन्य कृतिओ सं.१४३२नी मळे छे. जुओ जैन गुर्जर कविओ, भा.१, पृ.३८-४९ अने ४३४-३५ तथा गुजराती साहित्यकोश, खं.१, पृ.३२६. आ कृतिमां गुरुपरंपरा नथी. आ कृति 'रत्नसमुच्चय' तथा 'अभयरत्नसार'मां छपायेली छे. - संपा.]
मंगल-कमलाकंदु ए सखि सागर पूनिमचंदु ए, जगगुरू अजिय जिणंदु ए, संतीसर नयणानंदु ए. १ बे जिणवर पणमेवि ए, बिहु गुण गाइसु संखेवी ए, पुण्यभंडारू भरेसु ए, मानवभव सफल करेसु ए. २ कोडि हि लाख पंचासू ए, सागर जिणसासणि भासू ए, रिसह-जिणेसर-वंसू ए, उवज्झाउरि-सरवर-हंसु ए. ३ इणि अवसरि तिह राजीयउ ए, राजा जितशत्रु जगि गाजीउ ए, विजया तस घरि नारि ए, बे रमइ तु पास सारी ए. ४ कूक्खहि जिण अवतारू ए, तिणि राउ मनाविउ हारू ए, उवरि वसिउ दस मासु ए, पुण पूरइ जणणी आसु ए. ५ बिहु जण मनि आणंदियउ ए, सुत नाम अजिय जिण तुह दीयउ ए, तिहुयण सयल उछाहु ए, क्रमि क्रमि वाधइ जगनाहू ए. ६ हंस धवल सारस तणी ए, गति सुललित निज गति निरजणी ए, मलपति चालइ गेली ए, जणनयण अमीयरस रेलि ए. ७ अवर न समउ संसारी ए, बल नाण विवेक विचारि ए, गुण देखी गज गहगहइ ए, लंछण मिसि पग लागी रहइ ए. ८ जोवनवय जय आवीयउ ए, तव वर रमणी परणावीयउ ए, प्रिय साधई सवि काजु ए, प्रभु पालइ पुहविहि राजु ए. ९ हविं हत्थिणाउर ठामि ए, विससेण नरेसर नाम ए, राणीय अयरा देवि ए, मणहर सुख माणइ बेवि ए. १० चउद सुमिणे परवरिउ ए, अयरा-उयरिहिं सुत अवतरिउ ए, मानवदेवि वखाणीयइ ए, चक्कीसर जिणवर जाणीयइ ए. ११
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