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________________ १५८ अवसरका लाहा राग धमाल लीजीयें हो, Jain Education International प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह अहो मेरे ललनां, चल हो शिवपुर जाहिं. अव० लहके मलयसमीर, मंजरीरसलुब्धं कीर. अ० १ शीतल सरोवरनीर, गुंजत मधुकर धीर. अ० २ महके मास वसंत के तरूवर, अंब - अंब बिनु मोर जगे है, वन-वन- कुंजन टहकत कोकिल, इत उत ललित लताकुंजनमें, नवल वसंत नवल वर नागर, नवल शृंगार-सोहार, नवल अबीर गुलाल- शुं संधी, नवल अंतरिक्ष आगे रा गावत मंगल धूमत चंग मृदंग उपंगे, नटुवा लें चाहे या वसंतसमय मनमोहन, या सूरिजनको नवल धुंवार अ० ३ या प्रभु पास भेट भए थें, आनंद भइ रसरेल. अ० ५ ४९. आनंदकृत 'राजुल बारमास' मांथी [ आ कृति-कर्ता 'जैन गूर्जर कविओ' के 'गुजराती साहित्यकोश खं. १ 'मां नोंधायेल नथी. संपा] चार, इंगाल. अ० ४ खेल, दैवें विरही सरजीयां रे, कांइ न सरजी पांख, मनरा मान्या, बिहुं टोडें नारंगडी रे, माहे मोरी द्राख, मनरा मान्या. ५ चंग मृदंग डफ ताल-शुं रे, मुखडे पंचम राग, मन० केशरीये सब साज-शुं रे, फागुण रमीयें फाग. मन० ६ केइ फूली केइ पालवी रे, केइ कुंपल वनराय, मन० आंगण आंबो मोहरीओ रे, वलियो चैत्र सुवाय. मन० ७ ५०. रंगवल्लभकृत 'नेमि बारमास 'मांथी [कृति-कर्ता 'जैन गूर्जर कविओ' मां नोंधायेल नथी, 'गुजराती साहित्यकोश खं. १ 'मां आ संदर्भने आधारे ज नोंधायेल छे (पृ. ३४८). अन्य माहिती प्राप्य नथी. संपा. ] For Private & Personal Use Only - ढाल सिपाइडानी माघ सदा सुखदाय, अरे जांनी, सुखीयांने संसारमें, साहिबीया रे, प्राणनाथ मुझ नाहि, अ० लव लाइ गिरनार में सा० ७ फागुण सरस सुहाय, अ० अबीर गुलाल उडाइये, सा० ढोल मृदंग सुहाय, अ० गीत धमाल ज गाइये. सा०८ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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