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________________ १५१ प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन लब्धि कहे महा मंगलकारी, आव्यो माघनो मास, नरनारी मन माहे हरखें, धरती घणुं उल्लास, धरती घणुं उल्लास ते अंगे, मदवंती मतवाली रंगे, मांहोमांहे उमंग शुं भारी, लब्धि केहे महा मंगलकारी. ११५ विगतें शुं वनराय वखाणुं, मोर्या अंब कदंब, नारंगी सोपारी सोटा, लोहण लींबु जंबु, लोहण लींबु जंबु ते दीठां, सीता राम सदा फळ मीठां, फोग अशोग बिलि ने रायपुं, विगते शुं वनराय वखाणुं. ११६ कदलीफल श्रीफल बीजोरां, फणस पेर अंजीर, मधुर स्वरें पंखी विच राजे, कोकील ने वली कीर, कोकील ने वली कीर ते रूडा, मयूर नील चास ने सूडा, शोहे दाडिम द्राख खजूरां, कदलीफल श्रीफल बीजोरां. ११७ कणेयर केतकी नेवली रूडी, बोलसिरि बेफार, केवडी आ कुसुमाकर ऋतुमां, फूल्यां कुसुम अपार, फूल्यां कुसुम अपार अबुठ्या, जेम हरि रंगी बूट्या [बूटा उठ्या], चमरबंध चांपो केशुडी, कणेयर केतकी नेवली रूडी. ११८ लाल रंग गुलाला फरसी, तव ते बंदी जोड, शोश नारंगीना फरमाते, मीसल वार छे छोड, मीसल वार छे छोड ते सारा, गोटा दाउदीशर्णना [दाउदीउना] क्यारा, बेहेके घणी गुलाबनी सरसी, लाल रंग गुलाला फरसी. ११९ उज्ज्वल निमाली साहेली, जाइ जूइ मुहेल, सोन जुई पीली चंबेली, नवली नागरवेल, नवली नागरवेल ते नीली, नवपांखडीये डोलर खीली, वास सुवास रही छे फेली, उज्ज्वल निमाली साहेली. १२० एहवे वसंत रमवाने बागें, पांचम करी निरधार, राजकुमर नेमीश्वर साथे, जावू लइ परिवार, जावू लइ परिवारथी जेहवे, खबर थइ राणीउने तेहवे, तेडी सजनी साथ सोहागें, एहवे वसंत रमवाने बागें. १२१ आनंदे अलबेली रामा. उठी अंग उच्छाह, चारे कोरथी चतुरा चाली, चटपट अति चित्त चाह, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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