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________________ धर्मसमुद्रकृत शकुंतला रास (आ रासना कर्ता धर्मसमुद्र ए एक जैन साधु छे. ते पोतानो जे परिचय, पोतानी अन्य कृतिओमां आपे छे ते एटलो के पोते जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदायमांना खरतरगच्छना जिनहर्षसूरिना पट्टधर जिनचंद्रसूरिना शिष्य विवेकसिंह उपाध्यायना शिष्य हता. तेमणे सं.१५६७मां जालोरमां 'सुमित्रकुमार रास', सं.१५८४मा 'कुलध्वज सस' अने संवत आप्या वगरनी अन्य कृतिओ नामे ‘रात्रिभोजन रास' (अथवा 'जयसेन चोपाई'), 'अवंति सुकुमाल स्वाध्याय' आदि रची छे. जुओ मारुं पुस्तक नामे जैन गूर्जर कविओ, प्रथम भाग, पृ.११६थी ११९ आ रास ते पस्तक छपायं त्यार पछी हस्तगत थयेल छ ने तेनी रचनानो समय सं.१५७० लगभग मूकी शकाय. आ वर्ष लगभग कवि भालण- अवसान थयुं हशे एम रामलाल चुनीलाल [मोदी] जणावे छे. शकुंतला पर कोई पण प्राचीन गुजराती कविए आख्यान के पदबंध रचना करी होय एवं क्यांय हजी सुधी मालूम पड्युं नथी. आ उपर रचना करवानी पहेल करनार विक्रमनी सोळमी सदीना उत्तरार्धमां थयेल आ जैन कवि धर्मसमुद्र छे एम निर्विवादे कही शकाशे. आ कृति एक नानी छतां सुंदर कृति छे ते समग्र वांचतां जोई शकाशे अने तेनी आखी रचना जोतां तेना कर्ता एक जैन छे एवं कोईने भाग्ये ज जणाशे. कविशिरोमणि कालिदासकृत शकुंतला परतुं 'अभिज्ञानशाकुंतल' नामनुं 'नाटकोनी रसराणी' रूप नाटक सुप्रसिद्ध छे. तेनुं मूल वस्तु महाभारतमा मळी आवे छे. ते सिवाय संस्कृतमां अन्य कोई कविए तेना पर कंई रचना करी होय एवं जणायुं नथी. महाभारतना वस्तुमां कवि कालिदासे रोचक, उचित, रसविधायक फेरफार करी पोतानी साची कलाविधान अने प्रतिभाशक्ति तेमज सूक्ष्म रसवृत्ति बतावी छे. मारा मित्र अंबालाल बुलाखीराम जानी प्रेमानंदकृत 'सुभद्राहरण'नी प्रस्तावना पृ.१६६-१६७मां जणावे छे के : "कवि कालिदासे 'अभिज्ञानशाकुंतल'नी रचना महाभारतना एक वृत्तांतना आधारे रची छे; परंतु तेणे तेना नायक भारतनृपतिशिरोमणि दुष्यन्त अने नायिका शकुंतला ए बन्नेनां चारित्र्यने संसार अने नीतिना उचित आदर्शभूत निरूपवा बे महत्त्वनां नवां कथांतरो योज्यां छे. छतां तेमनी मानवप्रकृतिनी स्वाभाविकता, संपूर्ण कलाचातुरी अने रससंवेदनथी जाळवी राखी छे. तेणे तेमने आदर्शभूत दर्शाववा जतां तेमनी मानवतानो लेश मात्र नाश कर्यो नथी, पण तेनी पामरता निवारी ऊलटी बहलावी छे. (आ वात हालना साहित्यको लक्षमां लेशे के ?) मूळ वृत्तांतनो दुष्यन्त राजा अनेकपत्नीवाळो, कामी, अत्यन्त मोहवश, निष्ठुर अने असत्यवादी छे; त्यारे, 'अभिज्ञानशाकुन्तल'नो नायक दुष्यन्त राजा विनयी, धार्मिक, दयार्द्र अंत:करणवाळो, प्रेमशौर्यान्वित अने सत्यप्रिय छे. कालिदासे दुर्वासा मुनिना शापनो प्रसंग योजीने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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