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प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन
१२३ जो रे तोरे जादवा रे, जलधरवरणी देहो रे, गोपी विचमें वीजली, सोहे अधिक सनेहो रे. २८ फाग. राज करे रिणछोडजी रे, सब जनमन सुहायो रे, किसी अनूरति तेहनी, जेहने राम सखाई रे. २९ फाग. समुद्रविजय सुत नेमजी रे, जीव सकल प्रतिपालो रे,
राजहर्ष बहु भाव-सों, गाई फाग रसालो रे. ३० फाग० - इति फाग समाप्त.
१४. सिद्धिविलासकृत नेमराजुल गीत (र.सं.१७१५. आनी प्रत सं.१७६३ना फागण शुद १३नी कविनी स्वहस्तलिखित मळी छे. तेमां लख्युं छे के :
संवत सतरे सटे फाल्गुन तेरस जांण.
___पंडित सिद्धिविलासगणि, एह लख्यो सुप्रमाण.) [आ खरतरगच्छना सिद्धिवर्धनना शिष्य होवानी संभावना छे. जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.५. पृ.३५५ अने गुजराती साहित्यकोश, खं.१, पृ.४६२. आ कृति 'जैन गूर्जर कविओ' मां नोंधायेली नथी, अने सिद्धिविलासनी 'चोवीसी' (र.सं.१७९६)नी प्रत गुणविलासने नामे पण नोंधायेली छे (जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.५, पृ.३५६) तेथी सिद्धिविलास अने गुणविलास अपरनामो होवानी शंका थाय. 'गुजराती साहित्यकोश' गुणविलासनी नोंध लेतो नथी. ए सिद्धिविलासने नामे सं.१८००नो 'शील रास' नोंधे छे ए जोतां कविनो कवनकाळ घणो दीर्घ - सं.१७१५थी १८०० - ठरे. जोके काव्यमां ‘सतरे पनर' शब्दो जे रीते आवेला छे ते रीते ए रचना संवतदर्शक होवा विशे संशय रहे छे. कदाच पाठ भ्रष्ट होय. – संपा.]
राग धमाल राजुल नारी एम पयंपे, सुण हो नेमकुमार, ललनां, फागुण मास रंगीलो आयो, करीये हो क्रीडा अपार, ललनां, मन मोह्यो हमारो नेमजी हो. अहो मेरे प्रभुजी ! तुंही मुझ प्राण आधार. मन० आंकणी. १ एह रूति छे रमवा केरी, आय मिलो थें आज, ललना, बहुविध रीझावंगी तुझने, पूरो मुझ वंछित काज. मन० २ नरनारी मिलि फागुण मांहे, लाल गुलाल अबीर, ललनां, मरद मूंछाला वागा पहिरे, नारीने दक्षिण चीर. मन० ३ फागुण मास रंगीलो सोहे, मोर्या छे सहकार, ललनां, कोयलडी निज प्रीति धरीने, बोले ते साद श्रीकार. मन० ४
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