SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन पामि पाडल केवडी भमरनी, पूगी रूली केवडी, फूले दाडिम रातडी, विरहियां दोल्ही हुई रातडी, २७ फाग Jain Education International सुललित चरणप्रहारिइ मारइं कामिनीलोक. अधिक विहसंति अभागीया अभागीया तहवि अशोक; २८ कुचभरि करइ परीरंभ रंभा समाणी नारि, वनि वनि कुसुम रोमांकुर कुरबक धरई अपारि २९ पूरई षट्पद ऊलट फुलि [...]ट्यां वनखंड, त्रिभुवन मदन-महीपति दीपति अति प्रचंड. ३० काव्यं ओढी चादर चीर सुंदर कसी, दीली कसो कांचली, आंजी लोचन काजले सिरि भरी सीमंत सिंदुरनी; लेइ साथिई नेमिकुंवर सवे गोविंदनी सुंदरी, वाडीए गिरिनार डुंगरि गई सिंगारिणी खेलिवा. ३१ रासक वसंतखेलणि साथिई देवर, देवरमणी सम गोरी रे; पहुतली गिरिनार गिरि अंबावनि. बावनिचंदनि गोरी रे. ३२ अनंग - जंगम - नगरा बहु परि, परिणेवा मनावणहारी रे, ललाटघटित घनपीयलि कुंकुम, कुमर रमाडइ नारी रे. ३३ आंदोल कुमर रमाइ नारि, हींडोले हींचणहारि, उच्छंगि बईसारी ए सयरि सिंगारी ए; थाइ थुमणि थोर, दोलइ दीहर दोर, कंचण-चूडी ए, रणकई रूयडी ए. ३४ देउर(मार) उरवरि हार, वउलसिरी सुकुमार, नवनव भंगी ए, कुसुमची अंगी ए; त्रीकम - तरूणी तुंग, विरचइ सुचंग, अति अणीयालउं ए, खूप खूणालउ ए. ३५ फाग विचि विचित्र, कुसुम रचई खेमि, खूप खूणा अतिहि अलंकृत कलीहरि, हरि - रमणी लिई खेमि; ३६ कनक चउकीवट मांडती, [...] हा [स्य ?] रस पूरि, नेमि रमाडई सोगठे, सोग ठेसइं सवि दूरि. ३७ ११३ * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy