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________________ ११२ प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह उच्चैः कोकिलनादवाद्यनिवहः कामोऽयमामोहयन् विश्वं विश्वमदो मदोद्धुरतरः सज्जोऽभवद् दिग्जये. ३९ रास रतिपति अबला - बल सरिसइ, रीसइ चालउ वीर रे, मित्र वसंत प्रमुख निज परिकरि, परिकरिउ यति [ अति ?] धीर रे. ४० आविउ मुनिवर पासइ ते जवि, जव तव हउ उवसंताप रे, सीयल-कवच तसु देखी अति घण, धण गुण आराम चाप रे. ४१ ५. रत्नमंडनगणिकृत ‘रंगसागर नेमि फाग' मांथी (विक्रम पंदरमा सैकाना अंते सोमसुंदरसूरिना शिष्य रत्नमंडनगणिए आ अनुपम काव्य रच्युं छे.) [आ कृति आखी आ ग्रंथमां छापवामां आवी छे ते जुओ. संपा. ] Jain Education International रासक अवसर अवतरि रति (ऋतु) मधु माधवी, माधवी परिमल पूरी रे, कुसुम- आयुध लेई वनस्पती सवि, रही विरही ऊपरि सूरि रे. २१ मदन रणंगिणि सारथि परिमलभरि मलयानिल वाइं रे, सुभटि कि मधुकर करई कोलाहल, काहल कोकिल वाइं रे. २२ आंदोल [a], मदिरारूण नयणी, नार कि मरहठी ए, वनि वनि बईठी ए; पंथीप्राण पतंग, कालउं काजल भृंग, चंपक दीपकू ए, वनघर - दीपकू ए. २३ तेह सिरि वीणी ए; कुसुमित ए करूणी, जाणे किरि तरूणी, मधुकर श्रेणि ए, जंबीर बीजउरी, वेइल वउलसिरि, पाडल पारधी ए, मधुरस वारिधी ए. २४ फाग वाडीय सविहु कुसुमायुध - आयुध शाल हवंति, भमर रहई तिहां पाहरी, माहरि ए मनभ्रांति. २५ सेवंत्री फूलडइ महुर अर, महुअर रह्य जव दीठ. मुगध भणई तव राहुउ, आहुउ चंद्री बइठ २६ काव्यं ( शार्दूल) आवी ए मधुमाधवी रति (ऋतु) भली, फूली सवे माधवी, पीली चंपकनी कली मयणनी दीवी नवी नीकली; For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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