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प्राचीन मध्यकालीन साहित्यसंग्रह
उच्चैः कोकिलनादवाद्यनिवहः कामोऽयमामोहयन् विश्वं विश्वमदो मदोद्धुरतरः सज्जोऽभवद् दिग्जये. ३९
रास
रतिपति अबला - बल सरिसइ, रीसइ चालउ वीर रे, मित्र वसंत प्रमुख निज परिकरि, परिकरिउ यति [ अति ?] धीर रे. ४० आविउ मुनिवर पासइ ते जवि, जव तव हउ उवसंताप रे, सीयल-कवच तसु देखी अति घण, धण गुण आराम चाप रे. ४१
५. रत्नमंडनगणिकृत ‘रंगसागर नेमि फाग' मांथी
(विक्रम पंदरमा सैकाना अंते सोमसुंदरसूरिना शिष्य रत्नमंडनगणिए आ अनुपम काव्य रच्युं छे.)
[आ कृति आखी आ ग्रंथमां छापवामां आवी छे ते जुओ. संपा. ]
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रासक
अवसर अवतरि रति (ऋतु) मधु माधवी, माधवी परिमल पूरी रे, कुसुम- आयुध लेई वनस्पती सवि, रही विरही ऊपरि सूरि रे. २१ मदन रणंगिणि सारथि परिमलभरि मलयानिल वाइं रे, सुभटि कि मधुकर करई कोलाहल, काहल कोकिल वाइं रे. २२
आंदोल
[a], मदिरारूण नयणी, नार कि मरहठी ए, वनि वनि बईठी ए; पंथीप्राण पतंग, कालउं काजल भृंग, चंपक दीपकू ए, वनघर - दीपकू ए. २३
तेह सिरि वीणी ए;
कुसुमित ए करूणी, जाणे किरि तरूणी, मधुकर श्रेणि ए, जंबीर बीजउरी, वेइल वउलसिरि, पाडल पारधी ए,
मधुरस वारिधी ए. २४
फाग
वाडीय सविहु कुसुमायुध - आयुध शाल हवंति, भमर रहई तिहां पाहरी, माहरि ए मनभ्रांति. २५ सेवंत्री फूलडइ महुर अर, महुअर रह्य जव दीठ. मुगध भणई तव राहुउ, आहुउ चंद्री बइठ २६ काव्यं ( शार्दूल) आवी ए मधुमाधवी रति (ऋतु) भली, फूली सवे माधवी, पीली चंपकनी कली मयणनी दीवी नवी नीकली;
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