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प्राचीन जैन कविओनां वसंतवर्णन
('सुवर्णमाला'नो नवीन अवतार थयो अने तेना अंकोनुं बांधेलं पुस्तक मारा मित्र रा. चंदुलाले वांचवा आप्युं, तेमां गुजराती प्राचीन कविओनां वसंतवर्णन ए नामनो लेख चैत्र १९८२ना अंकमां छगनलाल विद्याराम रावळनो शरू थयेलो जोयो के जेमां नरसिंह महेताथी लई इंद्रावती (प्रणामी पंथनो) अने त्यार पछीना अंकमां कवि राजे भक्तथी लई साकरलाल पुरुषोत्तम शुक्लनां वसंतवर्णन लेवामां आव्यां छे. आ परथी जैन प्राचीन कविओनां वसंतवर्णन बने तेटलां एकत्रित करी प्रकट करवा पर विचार थतां तेनो अमल आ लेखमां करवामां आव्यो छे.
आ वर्णनोना बे भाग पडी शके छे. एक तो वसंतनां छूटां काव्यो अने बीजां आखां लांबां काव्योमांथी वसंतनां प्रसंगोचित वर्णनो.
हवे आ सर्व जोतां, जैनोना बावीसमा तीर्थंकर "नैष्ठिक ब्रह्मचर्यनो अनुभूत आदर्श आपनार यादव तीर्थंकर नेमिनाथ'' संबंधी जे काव्यो छे तेमां प्राय: वसंतनां वर्णन आपेला जणाय छे. वसंतनां छूटां काव्यो पण मुख्य भागे उक्त श्री नेमिनाथ संबंधीनां होय छे. जेम जैनेतर साहित्यमां 'बारमास' नामनी कृतिओ जोवामां आवे छे तेम जैन साहित्यमां पण 'बारमास' नामनी अनेक कृतिओ छे अने ते मुख्य भागे नेमिराजुल बारमास होय छे..
ज्यारे जैनेतर भक्तिसंप्रदायना रसात्मा, “कर्मयोगनो सक्रिय मार्ग उपदेशनारा वासुदेव श्रीकष्ण'ने मख्य नायक लई वसंतना उत्सवोमां पण तेने प्रधान पद जैनेतरोए आप्यं छे, त्यारे जैनमा प्रधान पद लग्न निमित्ते गया छतां पण लग्न न करतां राजिमती/राजुलनो त्याग करी धर्मदीक्षा लेनार नेमिनाथजीने आपवामां आव्युं छे. आम करी तेमज जिन-तीर्थंकरोनां स्तवनो-स्तुतिओ रची जैन कविओए भक्ति-साहित्य पण खीलव्युं छे. नेमिनाथ ते कृष्णना काका समुद्रविजयना पुत्र - पितराई भाई.
नेमिनाथनी कथा प्रसिद्ध छे. तेमां एक प्रसंग खास वसंत ऋतुने उचित छे ते ए छे के -
नेमिकुमारे कृष्ण वासुदेवनी आयुधशाळामां प्रवेश करी तेनो पांचजन्य शंख पूरीने वगाड्यो के जे शंख वगाडवा कृष्ण सिवाय कोई समर्थ न हतुं. कृष्णने खबर पडी ने ते प्रसन्न थया. भुजबळमां नेमिए कृष्णने नमाव्या. कृष्णे नेमिकुमार परणे तो सारुं एम विचार्यु, पण ते पूर्ण ब्रह्मचारी हता तेथी तेने लग्न प्रत्ये उत्सुक करवा पोताना अंत:पुरमा जवाआववानी छूट आपी तेमज पछी वसंतऋतुमां नगरजनो अने यादवोनी साथे पोताना अंत:पुर सहित रैवताचळना – गिरनारना उद्यानमां क्रीडा करवा कृष्ण नेमिनाथने लई गया. आ वखतर्नु वसंतनुं वर्णन नेमिनाथनां चरित्र ज्या-ज्यां छे त्यां-त्यां आपवामां आव्युं छे.
नेमिनाथनुं मौन लग्नेच्छा तरीके स्वीकारी तेमनो विवाह राजिमती साथे नक्की थयो. जान गई त्यां रथमां बेठेला नेमिनाथे प्राणीओनो करुण स्वर सांभळ्यो. त्यां जई जोयुं तो
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