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महानंदमुनिकृत नेमराजुल बारमासा
(महानंद मुनि लोंकागच्छमां थया छे. तेणे अनेक स्तवन-स्वाध्याय-पदो रच्यां छे अने तेनी रचनाओ सं.१८०९थी १८४९ सुधीनी मळे छे. तेमां प्रभुनी आरती आदि कृतिओ जोतां ते जे लोंकागच्छना हता ते गच्छ मूर्तिपूजक हतो एम जणाय छे. ए रूप-जीवनी परंपरामां जगजीवन-भीमसेन-मोटा ऋषिना शिष्य हता.)
[आरती के कवि मूर्तिपूजक होवानुं दर्शावती कोइ कृति नोंधायेली मळती नथी. जुओ जैन गूर्जर कविओ, भा.६, पृ.२६-३५ अने गुजराती साहित्यकोश खंड १, पृ.२९८. कृतिना रचनासंवतनुं अर्थघटन १८४५ करवानुं थाय छे पण नेम=८ केवी रीते थाय ते स्पष्ट थतुं नथी. नेन के नेत्र = ब्रह्मानेत्र = ८ थई शके. कवि मोटाना शिष्य छे अने सं.१८४५मां सोमचंदजी गच्छनी पाटे छे, पछी आ कृतिमां तिलक मुनिनो गुरु तरीके उल्लेख केम थयो छे एनो खुलासो मळतो नथी.
वस्तुत: आ प्रश्नो ऊभा थवानुं कारण ए छे के आ कृति, स्वल्प शब्दभेदे अने स्वल्प घटाडा-वधारा साथे, अहीं आ पूर्वे छपायेल नेमविजयकृत 'नेमि बारमास' ज छे. नेमविजयना गुरुनु नाम तिलकविजय अहीं रही गयुं छे अने ए कृतिना रचनासंवतना शब्दोमां अहीं गरबड थई छे. नेमविजयनी कृतिने आधारे अहीं भ्रष्ट पाठो सुधार्या छे, पण बाकी बधुं एमनु एम राख्युं छे. - संपा.]
समरीए शारदा नाम साचुं, एह विना जांणिइ सर्व काचुं; ज्ञान विज्ञान ने ध्यान आपे, महेरनी लहेर अज्ञान का. १ गुरुचरण नमि मास बारे ते गाउं, नेम राजूलने चित्त ध्याउं; जे प्रभु सत्य संपत्तिदाता, एह जिनभूषण सही जुगवाता[जगत्राता]. २
नेनना हेत शुं नेह जणावे, मास बारे कही प्रीउ मनावे; मागशिर मासे ते मन भावे, राजूल नेमने वेण सुणावे. ३
ढाल - कृष्णना मासनी मागसिर छे हितकारी रे, प्यारी जोवे छे रे वाट; हजी लगे नेम न आवीया, वाधिया विरह-उचाट. ४ हास्य विनोदना दोहरा, भावे नही मुझ अन्न; चित मांहि लागी चटपटी, अटपटी बोल वचन. ५
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