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________________ नेमविजयकृत नेमि बारमास Jain Education International जिम जिम वरसे रे मेहलो, तिम तिम मयणनां बाण, पापी प्रेम हरे प्रति, खांचे अंतर- प्राण. यौवनदिन जोग दोहिलो, सोहिलो नही रे लिगार, वाहला -1 - विहूणी विरहणी, धिग धिग तस अवतार. ४२ प्रीउ विना किस्यां भोजन, प्रीउ विना किस्यां हेज, प्रीउ विना किस्यां बोलडां, प्रीउ विना किसी सेज. प्रीउ विना किस्यां भूषण, प्रीउ विना किसि वात, प्रीउ विना किस्यां मंदिर, प्रीउ विना किसी राति. ४३ दू प्रीउतणा वियोगथी मयण व्यापे, खिण खिण देहडी तेह तापे, विरहिणी विरहनां बाण लागां, आवतां आसोइ दुख भागां. ४४ [ ढाल ] आसोई आस हुंती घणी, मन तणी आवस्ये नेम, नवनव भूषण लेइ, देइ धरसे रे प्रेम. में जांणु प्रभु सांमलो, आमलो टालस्ये धेर, पूरव करमने योगडे, बांध्युं मोटुं रे वेर. ४५ मोहन, एह दीवालीये, बाली मनमथें काय, काथ तणी परि दोहिलो, किम ते मुखि कहिवाय. भूषण दूषण परि गमे, नवि गमें सहीयर - साथ, विरहदावानल दाझतां, वालिभ, कीजे सनाथ. ४६ सासरे जावे रे सुंदरी, हरखे प्रीतम हेज, परणी महियलि पदमिनी, नित्य रमे निज सेजि. अतर ने चंदन अरगजे, परमल महके रे तन्न, सुधे-सुं भरि बहु सुंदर, देखतां किम रहे मन्न. ४७ धीरज जीव धरे नही देखी पराया रे लाड, सारण सखी, सया ज( ) ही [ ? ], उग्यां दुखनां रे झाड. केहने दाखू साहेलडी, मननां अंतर झि, मंदिर सुने भमती रहूं, कल न पडे कांई सुझ. ४८ For Private & Personal Use Only ९१ www.jainelibrary.org
SR No.002640
Book TitlePrachin Madhyakalin Sahitya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayant Kothari
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages762
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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