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श्री परमोदमाणिक गुरूसीसई, उवझाइ श्रोजयसोम जतीसई । । तास: शिष्य वाचकपदधार, श्रीगुणविनइ अछइ अणगार ॥१६॥ तिणि नमीराय रसो परबंध, पभण्यु जिणथी सुभ संबंध । अनुपम शम अमृतरसि भरीउ, नवमा अज्झयणथी उधरीउ ॥१६१॥ . जिम जिम ए सुणीयइ सुखकार, श्री नमीचरिय धरिय सुविचार । तिम तिम मनि संवेग उल्लास, तिणथी हुवइ सिव लील विलास ॥१६२॥ आसो शुदि छठिइ कवो भोमइ, मूल नखेत्र छठिइ रविजोगई । बंध्यउ ए संबंध सुबंधइ, मूलसूत्र रचना अनुबंधइ ॥१६३॥ श्रीजिनदतत्त]सूरी परभावई, श्रीजिनकुशलसूरी सुभ भावई । एह चरित सुणतां मनि धरतां, संपजउ सुखसंपद नितु भणतां ॥१६४॥
इति नमिराजऋषि संबंध ।।
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