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सुपनि शशि देखीनइ जागइ, पुहुती एम कहि प्रीय आगइ ॥१२॥ हरिखित 'थयउ कहि प्रीय वात, सुत थासि तुझ महि विख्यात । धरम मनोरथ पूरइ कंत, पुहुतो ऋतु तेतलइ वसंत ॥१३॥ कोकिल कुहु कुहु सर तार, मधूर करइ मधूकर झंकार । वनि वनि अंब जंबू तरू फुलइ, जे देखी मुनि केम न भूलइ ॥१४॥ वनमांहि रमलिकरण कइ हेतइ, मयणरेह जुगबाहु समेत[इ । खेलइ रमइ करइ कतोहल, तिणि खिणि प्रगट भए तमके बल ॥१५॥ ए अवसर लही मणिरथ भूप, करि ग्रहो खडग बभीषण रूप । जांणी किलिहर सुखि सूतउ, पाहुरोआं नरपासि पुहुतउ ॥१६॥ जागु केगि करउ सहराई, बोलइ किहां मू छइ लघू भाई । जाग्यु लघू बंधव इम कहीयइ, बंधव निशि वनमाहि किम रहीय || मणिरथ अनरथ रसि असि मूकइ, वईरी छिद्र देखि किम चूकइ । खंध संधि छेदि तिणि कार, ध्रसी पड्यउ धरणि निरधार ॥१८॥ धाह करी उठो तवं राणी, एह अकाज थयु इम जांणी। सुंदरि मूझ करथी असि पडिउ, भाई तणउ क्ध मुझ सरि चडीउ ॥१९॥ रखिक पुरषे मणिरथ पेरी, नयर भणो पहुचाव्यु फेरी । चन्द्रजसा सुणि ए विरतंत, आवइ वैद्य तेडी विलवंत ॥२०॥ ते व्रण करम करइ अतिसाचा, तेललइ तेहनो थाकी वाचा । लोचनजुगल मल्यां तसू तांम, रूधिर निकल्यु थयउ अथांमः ॥२१॥
एह अवस्था प्रीयतणो रे, देखी रामा ताम ।।
कर्णमूलि आवी करी रे, भणइ मधुस्वरि आम ॥ नाहजी सांभ[ल]ज्यो मूझ बोल, जांणीः सुधारस तोल-ए आंकणी ॥२२॥ चार सरण तुमनइ हवइ जी, श्री अरिहंत प्रधान । सिद्ध साध सवि साधवी जी, श्रीजिनधर्मनुं धांन । नाह. ॥ २३॥ इणि भवि परभवि बांधी जी, कर्म शुभाशुभ जेह। ते अवसि करी: वेदिवां जी, अथिर असुचि छइ देह ॥ नाह० ॥२४॥ हवि करि परभवि संबलु जी, मनि धरि अरिहंत देव । पंच महाव्रत जे. धरइ, जी, ते श्रीसहगुरू सेवि ॥ नाह० ॥२५॥
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