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________________ १७६ पंच महाव्रत हिवइ धरू जी, त्रिवधि त्रिवधि सुखकार । पापस्थानक परिहरू जी, तेहना भेद अढार || नाह० ॥२६॥ मात पिता सुत बांधवा जी, स्वारथीउ सहु कोई । अंति समइ एणि जीवन जी, काजि न आवइ कोय ॥ नाह० ||२७|| धन संचइ प्रीय कांमिनी जी, नवि आवइ तसु कांमि । इम जांणी हिअडाथकी जी, मत छांडउ जिन नांम ॥ नाह० ॥ २८ ॥ श्री नवकार मनि घरउ जी, एहथकी शिवराज । अथवा सुरगति पांमस्यु जी, मत वणसाडउ काज ॥ नाह० ||२९|| सीरि अंजलि जोडी करी जी, निसुणि ते प्रीय वाणि । पंचमइ कलपि ऊपनुं जी, मनि समाधि तजी प्रांण || नाह० ॥३०॥ हिवs ते चंद्रजसा तिहां जी, करs विलाप अनेक । मणिरेहा मनि चितवइ जी, धिग् धिग् नृप अविवेक || नाह० ॥ ३१ ॥ ए मुझ रूप अहीत हुउ जी, घिग् घिगू अनरथ मूल । दीप पतंग तणी परि जी, दुरगतिनइ अनुकूल ॥ नाह० ॥३२॥ लोक लाभ मूंकी करी जी, जेणि ए कीउ अकाज । सीलभंग करतां हवइ जी, तेहनइ केही लाज ॥ नाह० ॥३३॥ तेणि ईहां रहवउ नवि भलउ जी, हवइ देसांतरि जाइ । कारिज साघीस आपणु जी, जेहथी गुण मुझ थाय ॥ नाह० ||३४|| मइ ईहां रहतां ताहरू जी, करसइ एह विघात । एह विचार सूतस्युं करी जी, पूरि सूखि ते एकली जी, अडवीमांहि ते पडि जी, चाली ते अधराति || नाह० || ३५॥ जातां मारगि जांम । रयणि विहांणी तांम ॥ नाह • ॥३६॥ ॥ चुपई ॥ सागरी अणसण उचरी, गुंजइ सोह वाघ घुरघुरइ, श्री नवकार समरंती तेह, रणि मज्झणि सुत जनमीउ, देखी हरख घणउ पांमीउ || ३९ ॥ गगनमज्झि रवि आव्यु जिसह, पदम सरोवर दीठउ तिसइ | जल पीनइ बइठी अनुक्रमइ, वनफल खाई ते दीन नींगमइ || ३७॥ श्रीअरिहंत रहइ मनि धरी । सियार ही फेकारव करइ ||३८|| सूतां व्यथा थई तिहां देह | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002639
Book TitleMadanrekha Akhyayika
Original Sutra AuthorJinbhadrasuri
AuthorBechardas Doshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1973
Total Pages304
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size15 MB
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