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... परिशिष्ट २
नमिराजऋषिसंबन्ध कर्ता-श्रीगुणविनय (रचना संवत् १६६०) ॐ नमः सिद्धम् ।
ढाल राग गुडी प्रणमी श्रीफलवधिपुरराया, चितु धरेवि धुरि श्रीगुरुपाया । सुललित सारददेवि पसाया, वचनविलास लहेवि सूहाया ॥१॥ श्रीनमिराय रिसी सुवदीतु, मोहबल अरिबल जेणि जीतु । तेहनु चरित्त सुणउ सहु कोई, जिस निज आतिम निरमल होई ॥२॥ जेणि वधिपणि संयमसिरी पाई, तेह पभणो 'सि' उछक मनि थाई । संत महंत तणा गुण जेह, बोलइ ते लहइ शिवगति गेह ॥३॥ भरतक्षेत्र धणकणयसमृद्ध, देस आवंति नामि सुप्रसिद्ध । तत्थ सुदरसणनयरी कहींआ, ऋद्धिई जेम अलकाथी अहिआ ॥४॥ तिहां मणिरथ नामि वरराया, श्रीयुगबाहु भाई युवराया। तसु घरि म[य]णिरेह मनहरणी, रामारूपि जाणि सूररमणी ॥५॥ श्रोजिनमत भावित मति सोहइ, जिम कंचणमणि करि मन मोहइ । चंद्रजसा तमु सुत गुणवंत, नृपलखिण करी जेह महंत ॥६॥ अन्य द(दि)वसि ते मणिरथ भूप, निरखी मणिरेहानु रूप । मूलु फूल वस्त्र सिणगार, मूंकइ दासी साथि उदार ॥७॥ तुझनइ राजतणी धणीआणी, करस्युं मुझ अंगिकरी नांणी । इम सूकांम ते राजा जांणी, बोलइ मयणिरेहा गुणखांणी ॥८॥ ईहि-परलोय विरूध न करीइ, सीलरयण इम किम परिहरीयइ । परकलत्र अभिलासतु जीव, पांमइ नरगतणां दुख रीव । ९॥ तुं लघू बांधवथी नवि लाजइ, जिणि मन बांध्यु इणि अकाजइ । एह वईण सुणि नृपिं चिंतेइ, अंतराई लघु बंधव एई ॥१०॥ इणि जीवतइ वचन न मानइ, एहनइ हणी हिवइ करस्युं कां नइ । पछइ जोरि करी ए लेस्युं, इणि परि निज कारिज साधेस्युं ॥११॥ इम निज मनि चिंतइ ते राया, अन्य दिवस जुगवाहूनी जाया ।
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